ऋषिकेश। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) केे निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रविकांत के प्रयासों से संस्थान में नेत्र अधिकोश (आई बैंक) की स्थापना की गई है। इसका औपचारिक शुभारंभ सोमवार को उन्होंने किया।
उल्लेखनीय है कि एम्स में आई बैंक की स्थापना के लिए कुछ माह पूर्व संस्थान, सामाजिक संस्था ‘द हंस फाउंडेशन’ और नेत्र संस्थान ‘एलवी प्रसाद आई इंस्टीट्यूट हैदराबाद’ के मध्य करार हुआ था। एम्स में स्थापित नेत्र अधिकोश आई बैंक के मद्देनजर जनजागरुकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
प्रोफेसर रविकांत ने कही ये बात
कार्यक्रम में एम्स निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रविकांत ने बताया कि संस्थान मरीजों को विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने और आधुनिक तकनीक जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराने को प्रतिबद्ध है। इसके लिए सतत प्रयास किए जा रहे हैं जिससे उत्तराखंड और समीपवर्ती राज्यों के मरीजों को उपचार के लिए अन्यत्र महानगरों में परेशान नहीं होना पड़े।
ये सुविधाएं मिलेंगी
एम्स निदेशक ने बताया कि संस्थान में आई बैंक की स्थापना एक बड़ी उपलब्धि है। उन्होंने बताया कि एम्स के नेत्र विभाग में उपलब्ध कराई जा रही सुविधाओं में मेडिकल एवं सर्जिकल, रेटिना सर्जरी, मोतियाबिंद सर्जरी, भेंगापन की सर्जरी, काला मोतिया की सर्जरी, पलक बंदी, नासूर आदि उपचार उपलब्ध है। उन्होंने बताया कि निकट भविष्य में संस्थान में नेत्र रोग विभाग के तहत नेत्र चिकित्सकों का राज्यस्तरीय सम्मेलन आयोजित किया जाएगा।
संस्थान के नेत्र विभागाध्यक्ष प्रो. संजीव मित्तल ने बताया कि निदेशक के प्रयासों से एम्स ऋषिकेश में आई बैंक की स्थापना हो चुकी है। जिसके लिए संस्थान को महानिदेशक चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग की ओर से मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम (होटा) की आज्ञा भी प्राप्त हो चुकी है। अब संस्थान में नेत्रदान और कॉर्निया प्रत्यारोपण का कार्य प्रारंभ किया जा रहा है।
प्रो. मित्तल के अनुसार नेत्र दान के प्रति जनजागरुकता के लिए एम्स की ओर से सतत अभियान शुरू किया गया है, जिसके तहत लगातार जनजागरुकता कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। इसी कड़ी में संस्थान में 29 अगस्त (गुरुवार) को पब्लिक हेल्थ लेक्चर आयोजित किया जाएगा।
नोडल ऑफिसर डाॅॅ. नीति गुप्ता बोली
एम्स आई बैंक की नोडल ऑफिसर डाॅॅ. नीति गुप्ता ने बताया कि वर्तमान समय में हमारे देश में लगभग 60 से 70 लाख लोग कार्निया (अंधापन) से ग्रसित हैं। ऐसे रोगियों की संख्या में हर वर्ष लगभग 25 हजार का इजाफा हो रहा है। कार्निया का एकमात्र समाधान कार्निया प्रत्यारोपण है और वह नेत्रदान के संकल्प से ही पूरा हो सकता है।
डाॅ. नीति गुप्ता ने बताया कि हमारे देश में आंखों की पुतली की नितांत कमी है जो नेत्रदान से ही प्राप्त हो सकती है। उन्होंने लोगों से नेत्र दान का आह्वान किया। इस अवसर पर सामुदायिक एवं परिवार कल्याण विभागाध्यक्ष प्रो. सुरेखा किशोर, डीन (एलुमिनाई) प्रो. बीना रवि, फैकल्टी समेत सभी रेजिडेंट्स डॉक्टर उपस्थित थे।