मुंबई : जंगल जंगल बात चली है, पता चला है…अरे चड्ढी पहन के फूल खिला है, फूल खिला है…
अगर आप ये पंक्तियां आज अपने बच्चों (मौजूदा पीढ़ी के चार-पांच साल के बच्चों) के सामने गुनगुनाएंगे तो वो आपसे तुरंत पूछेंगे- ‘पापा आप ये कौन सा गीत गा रहे हो?…’ आप शायद मुस्कुराकर कुछ न कहें और अगर वाकई में आप अपने बच्चों को इस गीत का महत्व समझना चाहते हैं तो, सबसे अच्छा है कि उन्हें रुडयार्ड किप्लिंग की ‘द जंगल बुक’ दिखा लाइये। दो अलग-अलग पीढ़ियों को एक साथ जोड़ने वाली मोगली की ये कहानी वाकई अनूठी है।
नब्बे के दशक में इसने घर-घर राज किया और यह एक लाइव-एनिमेशन/सीजीआई के रूप में आपके सामने है। इसमें कोई दो राय नहीं कि ढाई दशक से ज्यादा गुजर जाने के बाद भी मोगली, बघीरा और शेरखान आज भी लोगों को याद हैं। नब्बे के उस दौर के ब्लैक एंड व्हाइट टीवी से निकल मोगली अब बड़े परदे पर 2डी-3डी के रूप में आपके सामने है।
मोटे तौर पर मोगली की कहानी से हम सब वाकिफ हैं। लेकिन एक आज घटना के रूप में ‘द जंगल बुक’ (2016) का महत्व काफी अलग दिखता है। खासतौर से इस किस्त में।
जंगल में छह साल के मोगली (नील सेठी) की जिंदगी मजे से कट रही है। ये वो जंगल है, जहां हाथियों के झुंड को घुटनों के बल बैठ कर सम्मान दिया जाता है। फिर चाहे वो इंसान हो या जंगल का कोई भी जानवर। मोगली की दिनचर्या आज भी बघीरा (काला तेंदुआ) संग रेस से शुरू होती है। बचपन में मोगली, बघीरा को ही मिला था। उसी ने उसकी परवरिश की है। जंगल में मोगली सबका चहेता है, सिवाय शेरखान (बाघ) के। शेरशान का बस चलता तो वह उसे कब का मार देता। मोगली पर वार करने का वो कोई मौका खाली नहीं जाने देता।
बड़े दिनों से ताक में बैठा शेरखान एक दिन मोगली पर हमला कर देता है, लेकिन बघीरा अपनी जान पर खेल कर उसकी फिर से रक्षा करता है। अचानक हुए इस हमले में किसी तरह से मोगली इन सब लोगों से बिछड़ जाता है। वह जंगल में भटक जाता है। यहां उसकी मुलाकात ‘का’ (मादा अजगर) से होती है, जो उसे उसके अतीत और पिता के बारे में बताती है। रहस्यमयी का, के पाश में मोगली बंधने ही वाला होता है कि बलू (भालू) उसकी जान बचाता है। दोनों में दोस्ती हो जाती है। बलू, बड़ी चालाकी से मोगली के इंसान होेने का फायदा उठाता है। अपनी दोस्ती और जिंदगी का हवाला दे कर वह उसे शहद जमा करने के काम पर लगा देता है, लेकिन तभी बघीरा उसे वहां ढूंढता हुआ आ जाता है।
बघीरा, मोगली को वापस ले जाने आया है। उसके जाने के बाद जंगल में बहुत कुछ घट चुका है। दरअसल, मोगली पर अपने नाकाम हमले के बाद गुस्साए शेरखान ने अकीला (भेड़िया) को मार दिया है और अब वह रक्षा (मादा भेड़िया) और उसके बच्चों पर दांत गड़़ाए बैठा है। बघीरा ने ये बात मोगली को नहीं बताई है। बघीरा, मोगली को वापस जंगल ले जा पाता इससे पहले लंगूरों, बंदरों और चिम्पैजियों आदि की एक फौज मोगली का अपहरण कर किंग लुई (विशालकाय ओरेंगोटैन) के पास ले जाती है। किंग लुई, मोगली से दोस्ती का हाथ बढ़ता है और अपना एक काम उसे करने को कहता है। किंग लुई, को चाहिये रेड फ्लॉवर (आग) जो कि इंसानों की बस्ती में मिलता है।
इससे आगे की कहानी बताने पर फिल्म का रोमांच कम हो सकता है, इसलिए मोगली गाथा फिलहाल यहीं तक।
मोगली गाथा की सबसे बड़ी ताकत है, इसके किरदार। इन किरदारों का मोगली के प्रति अपनापन एक तरह का रक्षा भाव और वफादारी का अहसास कराता है। यही वजह है कि मन करता है कि ये गाथा-कथा कभी खत्म ही न हो। इसे बार-बार देखते जाओ।
एक मुक्कमल फिल्म के रूप में इसका रोमांच और बढ़ जाता है। निर्देशक ने एक ऐसे जंगल की कल्पना की है, जो खूबसूरत है और भयानक भी। खतरनाक और जीवंत भी। मोगली का पहला ही सीन, बॉन्ड फिल्म सरीखा है। पेड़ों, चट्टानों, पानी-पर्वत को चीरते हुए बघीरा संग उसकी रेस वाकई रोमांचित करती है। ऐसा ही रोमांच उसके अपहरण वाले सीन में भी दिखता है। इस तरह के रोमांच के बाद एक सीन शेरखान और रक्षा के बीच भी है, जब अकीला की मौत के बाद शेरखान उसके बच्चों को अपने आगोश में लिए बैठा है। यहां एक विधवा की लाचारी-बेबसी का अहसास होता है, जो केवल अपने बच्चों की सलामती के लिए खामोश है, लेकिन उसका स्वाभिमान फिर भी कायम है। जंगल बुक की ये खूबसूरती ऐसे कई दृश्यों से दिखती है।
बलू और मोगली के शहद इकट्ठा करने वाले सीन, भैंसों के झुंड संग मोगली का तेज वर्षा से बच निकलना और किंग लुई की सल्तनत को मटियामेट करना आदि दृश्य इस पौने दो घंटे की फिल्म को अद्भुत बना देते हैं। फिल्म में एक ही कलाकार है और वह नील सेठी। इसमें कोई दो राय नहीं कि इस छोटे से बच्चे ने काफी प्रभावित किया है। उसका इकहरा-सा बदन, चंचल-चपल और मासूमियत इस कथा को और रोचक बना देती है। वो फट से कूदता है और झट से आंखों से ओझल हो जाता है। ये स्पिरिट ही इस किरदार की जान है। लेकिन इस फिल्म में कुछेक खामियां भी दिखती हैं। ज्यादातर दृश्य अंधेरे में हैं। बेशक, ये कहानी की मांग हो सकती है, लेकिन इससे कुछेक पल के लिए झुंझलाहट भी होती है। फिल्म का पूरा क्लाईमैक्स अंधेरे में रात के समय में है।
इसी तरह से इसके 3डी इफेक्ट्स भी काफी कम हैं। 3डी के माध्यम से एकदम से चौंकाने वाले दृश्यों की काफी कमी है। बहुत जरूरत न पड़ने पर इसका मजा 2डी में भी लिया जा सकता है। फिल्म का एनिमेशन और लाइव-एक्शन-सीजीआई वगैराह उत्तम है, लेकिन शेरखान का मुख प्रभावी नहीं लगता, जबकि इन्हीं विशेष प्रभावों से सुसज्जित फिल्म ‘लाइफ ऑफ पाई’ का बाघ ज्यादा प्रभावी और असल दिखता है। एक कमी फिल्म की अवधि को लेकर भी लगती है। आप इस फिल्म में इस तरह से बंध जाते हैं कि लगता कि यह कभी खत्म ही न हो। निर्माता-निर्देशक इसे दो या सवा दो घंटे की कथा के रूप में भी बुनते तो शायद और बेहतर रहता। हिन्दी पट्टी के दर्शक इसका हिन्दी में डब वर्जन देखेंगे तो उन्हें और मजा आएगा। बॉलीवुड सितारों की आवाज में इसका डब वर्जन, अंग्रेजी के मुकाबले थोड़ा ज्यादा चुटीला और रसीला है। खासतौर से जंगल जंगल… वाला गीत, जिसे आप गुनगुनाते हुए सिनेमाघर से बाहर आएंगे।
रेटिंग 3.5 स्टार
सितारे : नील सेठी, रितेश राजन
आवाजें : इरफान खान, प्रियंका चोपड़ा, ओम पुरी, नाना पाटेकर, शेफाली शाह, रितेश राजन, बग्स भार्गव
निर्देशक : जोन फॉव्रियो
निर्माता : जोन फॉव्रियो, ब्रिघम टेलर
संगीत : जॉन डेब्ने