नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने गौवध को निषेध करार देने वाले एक कानून को लागू करने की मांग करने वाली एक याचिका पर सुनवाई करने से इंकार करते हुए कहा, यह मामला न्यायिक फैसले के क्षेत्र से बाहर का है और यह एक नीतिगत मसला है।
मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी और न्यायाधीश राजीव सहाय एंडलॉ की पीठ ने कहा, यह कहने के लिए पर्याप्त आधार है कि जब-जब विधायिका को जरूरी लगा है उसने इस संदर्भ में उपयुक्त कानून बनाए हैं और उन्हें चुनौती देने के मामलों पर अदालत द्वारा गौर किया जाता रहा है।
पीठ ने कहा, हमें डर है कि यह मामला न्यायिक निर्णय के क्षेत्र से परे का है और यह एक नीतिगत मामला है। अदालत शक्तियों के बंटवारे की नियमावली के तहत इसका अतिक्रमण करने के लिए अधिकृत नहीं है।
अदालत का यह फैसला एक एनजीओ साध फाउंडेशन द्वारा दायर जनहित याचिका पर आया है। इस एनजीओ ने बूचड़खानों के खिलाफ कार्रवाई की भी मांग की थी। याचिका में अदालत से अनुरोध किया गया कि वह कुछ ऐसे प्रबंध करने के निर्देश जारी करे, जिससे गाय द्वारा मानवता को अधिकतम पर्यावरणीय एवं आर्थिक लाभ उपलब्ध करवाए जा सकें।
हालांकि पीठ ने इस याचिका को सुनवाई के लिहाज से अयोग्य करार दिया और कहा कि यहां तक कि उच्चतम न्यायालय ने भी पहले के एक आदेश में निष्पक्ष तरीके से कहा था कि अदालत गौवध पर प्रतिबंध के लिए कोई निर्देश नहीं दे सकती क्योंकि यह मामला नीति आधारित है और है।
अदालत ने शीर्ष अदालत के फैसले का उल्लेख करते हुए कहा, आगे कहा गया कि पूर्ण प्रतिबंध उपयुक्त विधायिका द्वारा लागू किए गए कानून के जरिए ही लाया जा सकता है। जम्मू-कश्मीर के उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ द्वारा भी यही रूख अपनाया जा चुका है।