बदहाल स्वास्थ्य सेवा : 108 एम्बुलेन्स में नही था डीजल, सीएमएस नही उठाते है फोन

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लखनऊ । प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रदेश की जनता की बेहतरी के लिए चाहें जितनें भी इन्तिज़ाम कर दें लेकिन सरकारी अस्पतालों के डाक्टर है कि सरकार की मन्शा पर पानी फेरनें में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहें है। सरकारी अस्पतालों की लापरवाही और मनमर्जी का जीता जागता उदाहरण सोमवार की सुबह रानी लक्ष्मी बाई अस्पताल में उस वक़्त देखने कों मिला जब 29/1 मालवीय नगर ऐशबाग बाज़ार खाला के रहनें वालें भारत दूर संचार निगम सें रिटायर हुए 69 वर्षीय बुज़ुर्ग अमृत लाल रानी लक्ष्मी बाई अस्पताल पहुचें सांस की बीमार सें कराह रहें अमृत लाल कों अस्पताल के डाक्टरों नें देखना तक बेहतर नही समझा अपनी जि़म्मेदारी सें पल्ला झाड़तें हुए यहॅा के डाक्टर नें अमृत लाल को मेडिकल कालेज के लारी अस्पताल जानें को कहा बुज़ुर्ग अमृत लाल नें यहॅा के डाक्टरों सें निवेदन किया कि आप हमारा प्राथमिक उपचार कर दीजिए क्यूकि एक डाक्टर नें मुझे बताया है कि मुझे दिल की नही बल्कि आक्सीज़ीन की परेशानी है। बुज़ुर्ग मरीज़ अमृत लाल की डाक्टरों नें एक न सुनी और उनका इलाज करनें सें इन्कार कर दिया। अस्पताल के बाहर तड़प रहें अमृत लाल के परिजनों नें मायूस होकर मुख्यमंत्री की महत्वकाक्षी योजनाओं में सें एक 108 एम्बुलेन्स को काल किया लेकिन डेढ़ घंटे के इन्तिाज़ार के बाद भी एम्बुलेन्स नही पहुची मरीज़ के परिजनों नें वहॅा अस्पताल में पहलें सें खड़ी 108 एम्बुलेन्स के चालक सें मरीज़ को मेडिकल कालेज पहुचानें को कहा तों गाड़ी के चालक का जवाब सुन कर मुख्यमंत्री की महत्वकाक्षंी योजना 108 पर सवालिया निशान लग गए चालक नें कहा कि उसकी एम्बुलेन्स की टंकी सूखी पड़ी है कल सें एम्बुलेन्स में डीज़ल नही है चालक प्रदीप नें बताया कि वों गाड़ी में डीज़ल न होनें की शिकायत भी कर चुका है लेकिन कोई सुनवाई नही हुई। चालक के इस बयान सें यें साबित होता है कि मुख्यमंत्री तों प्रदेश की जनता के लिए संवेदनशील है और जनता की बेहतरी के लिए करोड़ों रूपए सरकारी खज़ानें सें खर्च कर रहें है लेकिन सरकारी अस्पतालों के डाक्टर और 108 एम्बुलेन्स सेवा सें जुड़े अधिकारी सरकार की कारगुज़ारियों पर प्रश्न चिन्ह लगानें में कोई कसर नही छोड़ रहें है। हद तो तब हो गई जब संवादददाता नें रानी लक्ष्मी बाई अस्पताल के आधिक्षक डाक्टर आरके चौधरी को फोन कर उनकी प्रतिक्रिया जाननी चाही तों उन्होनें तीन बार संवाददाता का फोन ही रिसीव नही किया। सवाल यें उठता है कि मजबूर मरीज़ों के लिए करोड़ों रूपए खर्च कर बनाए गए सरकारी अस्पताल और सैक्ड़ों करोड़ रूपए खर्च कर खरीदी गई 108 एम्बुलेन्स का ये हाल है ।

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