लखनऊ । उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में सितम्बर 2013 में हुए दंगों की जांच के लिए गठित विष्णु सहाय आयोग ने अभिसूचना तंत्र की विफलता को इन फसाद का मुख्य कारण मानते हुए तत्कालीन जिलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं। विधानसभा में आज पेश की गई इस रिपोर्ट में 27 अगस्त 2013 को मुजफ्फरनगर के कवाल में अल्पसंख्यक समुदाय के एक युवक द्वारा बहुसंख्यक समुदाय के दो युवकों की हत्या के बाद हुए धु्रवीकरण के नतीजे में मुजफ्फरनगर दंगे होने की बात कही गई है। रिपोर्ट के मुताबिक आयोग ने अभिसूचना तंत्र की विफलता को दंगों का मुख्य कारण माना है। रिपोर्ट के मुताबिक सात सितम्बर 2013 को दंगों वाले दिन स्थानीय अभिसूचना इकाई के तत्कालीन निरीक्षक प्रबल प्रताप सिंह द्वारा मुजफ्फरनगर के मण्डौर में आयोजित महापंचायत में शामिल होने जा रहे लोगों की संख्या की सही खुफिया रिपोर्ट नहीं दे पाने, महापंचायत की रिकार्डिंग ना किए जाने तथा तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सुभाष चन्द्र दुबे की ढिलाई और नाकामी के कारण मुजफ्फरनगर में दंगे हुए जिनकी आग सहारनपुर, शामली, बागपत तथा मेरठ तक फैली। छह खण्डों वाली 700 पन्नों की इस रिपोर्ट में तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के निलम्बन और विभागीय जांच की कार्यवाही से सहमति व्यक्त करते हुए उस वक्त मुजफ्फनगर के जिलाधिकारी रहे कौशल राज शर्मा को भी जिम्मेदार मानते हुए उनसे नगला मण्डौर में आयोजित महापंचायत के मद्देनजर कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए की गई व्यवस्थाओं तथा महापंचायत की वीडियोग्राफी ना कराए जाने के बिंदुओं पर स्पष्टीकरण मांगा गया है। रिपोर्ट में मीडिया को भी कठघरे में खड़ा किया गया है। आयोग का मानना है कि मीडिया ने दंगों से सम्बन्धित घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर रिपोर्टिंग की और अफवाहें भी फैलाईं। कुछ खबरों ने तो दंगों को भड़काया भी। संसदीय कार्य मंत्री आजम खां द्वारा सदन में पेश की गई रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मुजफ्फरनगर में दंगे भड़कने से पहले 27 अगस्त 2013 को कवाल काण्ड वाले दिन ही मुजफ्फरनगर के जिलाधिकारी सुरेन्द्र सिंह और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक मंजिल सैनी के स्थानान्तरण से खासकर जाट समुदाय में सरकार के खिलाफ आक्रोश व्याप्त हो गया।