लखनऊ। सराहनीय सेवाओं के लिये पुलिस महानिदेशक उत्तर प्रदेश पुलिस ( DGP) द्वारा 15 अगस्त को दिये वाले को प्रशंसा चिन्ह प्रदान किये जाने हेतु चयनित किये गये अधिकारियों कर्मचारियों में सामाजिक सरोकार के जरिये समाज में खाकी वर्दी का मान सम्मान बढ़ाने वाले सब इंस्पेक्टर अनूप कुमार मिश्रा अपूर्व का नाम भी चयनित किया गया है । उत्तर प्रदेश पुलिस सेवा में सेवारत और वर्तमान में पी ए सी मुख्यालय कंट्रोल रूम में अपनी ड्यूटी का दायित्व बाखूबी निभाने के साथ साथ सराहनीय सामाजिक कार्यों के लिये अनूप मिश्रा को ये प्रशंसा चिन्ह ” सिल्वर पदक ” स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर 15 अगस्त 2019 को प्रदान किया जायेगा।
ज्ञान की अलख जगा रहा एक पुलिस वाला वर्दीवाला द्रोणाचार्य अनूप मिश्रा
खाकी वर्दी का खौफ़ हो या खाकी वर्दी का साथ दोनों ही पहलू हमें समाज में देखने को मिलता है लेकिन खाकी वर्दी के फौलादी सीने में प्यार,जज़्बात,समर्पण और मानवीय संवेदनाओं का खूबसूरत तालमेल बहुत कम देखने को मिलता है ।ऐसे ही गुणों का तालमेल बिठाकर तमाम चेहरों की मुस्कुराहट के लिए कदमताल करते हुए लखनऊ की सरजमीं पर पुलिस विभाग के सब इंस्पेक्टर अनूप कुमार मिश्रा “अपूर्व ” एक नई इबारत लिख रहे हैं। अनूप मिश्रा उत्तर प्रदेश पुलिस विभाग में सब इंस्पेक्टर के पद कर सेवारत हैं और वर्तमान में पी ए सी मुख्यालय कंट्रोल रूम में बाखूबी अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं । मानवीय मूल्यों से ओत-प्रोत अनूप कुमार मिश्रा पुलिस की छवि को उदार , संवेदनशील होने के साथ राष्ट्र और समाज के प्रति सच्चे भाव से समर्पित पुलिस के रूप में बनाने की कदावर कोशिश में स्वर्णिम भविष्य के हीरों को तराशने का कार्य कर रहे हैं। मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे अनूप मिश्रा अपनी ड्यूटी का दायित्व निभाने के बाद बचे हुए समय में अभावग्रस्त बच्चों को निःशुल्क शिक्षित करने का कार्य कर रहे हैं । पुलिस सेवा में आने के बाद सन 1997 में उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़िले में पहली पोस्टिंग हुई थी । लेकिन दूसरों के लिए कुछ कर गुजरने के ख्याल ने जन्म दिया स्ट्रीट क्लास को । जी हां स्ट्रीट क्लास जो अनूप मिश्रा ड्यूटी के बाद बचे समय मे यहाँ चलाने लगे थे । ये स्ट्रीट क्लास कोई योजनाबद्ध कोचिंग क्लास जैसी नहीं थी बल्कि अनूप के मन मे उपजी वो टीस थी उनके मन मे उस वक़्त घर कर गई जब वो ख़ुद इंटरमीडिएट की पढ़ाई के दौरान अपने जेबखर्च के लिए ट्यूशन पढ़ाया करते थे। उस वक्त आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण कई अच्छे बच्चे पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते थे ।इस बात से व्यथित होकर अनूप ने अपनी स्नातक व एल.एल.बी की पढ़ाई के दौरान तमाम बच्चों को बिना फीस के ही पढ़ाया और कूड़ा बीनने वाले, भीख मांगने वाले , झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले बच्चों को शिक्षा का महत्व समझाकर उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित किया। ऐसे विशेष बच्चों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने का सतत प्रयास करते रहे ।
उन्नाव रेलवे स्टेशन के आस पास के जो बच्चे गरीबी के कारण नहीं पढ़ पा रहे थे और जो पढ़ तो रहे थे किंतु एक अच्छे शिक्षक के अभाव के कारण पढ़ाई में कमजोर थे ,वे सभी स्ट्रीट क्लास का हिस्सा बने । किसी ने पहली बार चाक पकड़कर अक्षरों की ताक़त को महसूस किया तो किसी ने अक्षरों को सुनहरे रंग में बदलने का हुनर सीखना शुरू किया। दो चार बच्चों से शुरू हुए सफ़र में हमसफ़र बढ़ते गए और शिक्षा की रौशनी बढ़ने लगी ।लोग जागरूक हुए और कारवां बढ़ा तो एक हाजी साहब के कारखाने में जगह मिल गई शिक्षा का दिया अब खुली सड़क पर नहीं एक छत के नीचे पनाह पा गया और फिर द स्ट्रीट क्लास खाली समय का सदुपयोग ही नहीं बल्कि जीवन का संकल्प बन गई ।