नेल्लोरे। चांद पर भारत का दूसरा महत्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान-2 सोमवार (22 जुलाई) को दोपहर दो बजकर 43 मिनट पर रवाना होगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने यह जानकारी रविवार को विज्ञप्ति के जरिए दी है। पहले इसे 15 जुलाई को प्रक्षेपित किया जाना था, लेकिन तकनीकी खराबी के कारण टाल दिया गया था। विज्ञप्ति के मुताबिक चंद्रयान-2 को ले जाने वाले भारी-भरकम रॉकेट जीएसएलवी एमके-3 का रिहर्सल पूरा कर लिया गया है। ‘बाहुबली के नाम से चर्चित यह रॉकेट सामान्य तरीके से काम कर रहा है। वैज्ञानिक उस समस्या की गंभीरता का आकलन कर चुके हैं, जिसकी वजह से 976 करोड़ रुपये की लागत वाले महत्वाकांक्षी चंद्र मिशन को रोकना पड़ा था। यह दुनिया का पहला मिशन है जिसमें लैंडर चन्द्रमा के दक्षिण ध्रुव पर उतरेगा। इस मिशन का मुख्य उद्देश्य चन्द्रमा पर पानी की मात्रा का पता लगाना, खनिज एवं रसायनों का अध्ययन करना आदि है। इसके पहले चंद्रयान-1 ने वहां पर पानी की मौजूदगी की पुष्टि की थी। इस 3,850 किलोग्राम वजनी अंतरिक्ष यान को अपने साथ एक ऑर्बिटर, एक लैंडर और एक रोवर लेकर जाना था। चंद्रयान-2 को चंद्रमा पर उतरने में 54 दिन लगेंगे। इसरो के अनुसार चंद्रयान-2 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में उतरेगा, जहां वह इसके अनछुए पहलुओं को जानने का प्रयास करेगा।
अब तक 13 बार हो चुका है इस्तेमाल – छोटे उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए इस्तेमाल होने वाला जीएसएलवी एमके-3 का अप्रैल 2001 से अब तक 13 बार इस्तेमाल किया गया है। इनमें से 3-जीसैट-5पी, जीसैट-4 और इनसैट-4सी विफल प्रक्षेपण रहे, जबकि संचार उपग्रह जीसैट-7ए, जीसैट-6ए और जीसैट-9 के अलावा इनसैट-3डी, जीसैट-6, इनसैट-4सीआर और एडुसैट, जीसैट-2, जीसैट-3, जीसैट-19 का प्रक्षेपण सफल रहा है। चार टन तक का भार (पेलोड) ले जाने की क्षमता के कारण ‘बाहुबली कहे जा रहे जीएसएलवी एमके-3 ने जीसैट-29 और जीसैट-19 उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण किया है। इसरो ने इसी रॉकेट का इस्तेमाल करते हुए क्रू मॉड्यूल वायुमंडलीय पुन: प्रवेश परीक्षण (केयर) को सफलतापूर्वक अंजाम दिया था। इसरो के प्रमुख के. सिवन के मुताबिक दिसम्बर 2021 के लिए निर्धारित मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम गगनयान के लिए भी जीएसएलवी एमके-3 का प्रयोग किया जाएगा।