लखनऊ। उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने शुक्रवार शाम 12 आईपीएस अधिकारियों के तबादले किए है. जिसके तहत वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी सुलखान सिंह को यूपी का नया डीजीपी बनाया है. वे जावीद अहमद की जगह लेंगे.
बता दें कि 1980 कैडर के यूपी के सबसे सीनियर आईपीएस अफसर सुलखान तेज-तर्रार इमेज वाले अफसरों में गिने जाते हैं. सुलखान सिंह प्रदेश के सबसे सीनियर आईपीएस ऑफिसर हैं। लेकिन इनका कार्यकाल सिर्फ 4 माह ही बचा है।
वहीं जावीद अहमद को पीएसी का डीजीपी बनाया गया है, जबकि आदित्यनाथ मिश्रा को एडीजी लॉ एंड ऑर्डर नियुक्त किया गया है. योगी आदित्यनाथ सरकार ने प्रदेश की कानून व्यवस्था आईपीएस सुलखान सिंह को सौंपी है। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने शुक्रवार शाम 12 आईपीएस अधिकारियों के तबादले किए है. जिसके तहत वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी सुलखान सिंह को यूपी का नया डीजीपी बनाया है. वे जावीद अहमद की जगह लेंगे.
कौन हैं सुलखान सिंह ?
साल 1980 कैडर के यूपी के सबसे सीनियर आईपीएस सुलखान तेज-तर्रार छवि वाले अधिकारियों में गिने जाते हैं. बता दें कि सितंबर महीने में ही सुलखान का रिटायरमेंट है. अभी तक सुलखान सिंह डीजी ट्रेनिंग के पद पर तैनात थे.
सुलखान बांदा के रहने वाले हैं और उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग के साथ लॉ की डिग्री भी ली है. बताया जा रहा है कि सीनियॉरिटी के आधार पर उन्हें यूपी का डीजीपी बनाया गया है
सुलखान सिंह आगरा की सांसों में बसते हैं। चौंकिए मत। वे आगरा में 1987 के अंत में एसपी सिटी बनकर आए थे। दो जोड़ी कपड़ों में चलने वाले सुलखान सिंह बहुत ही साधारण तरीके से रहते थे, लेकिन खासियत यह थी, उनके चार्ज लेने के बाद आगरा का माहौल ही बदल गया।
5 महीने बाद रिटायर हो जाएंगे सुलखान
मूल रूप से बुंदेलखंड के बांदा के रहने वाले सुलखान सिंह पांच महीने बाद रिटायर हो जाएंगे। सुलखान को केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह का करीबी माना जाता है। राजनाथ सिंह सरकार में वे लखनऊ के डीआईजी थे। यह महज इत्तेफाक ही है कि वह जब प्रदेश के डीजीपी बने तो राजनाथ सिंह भी लखनऊ में थे। सुलखान रामपुर, पीलीभीत, सहारनपुर, इलाहाबाद और आगरा में पुलिस कप्तान रह चुके हैं। वे मिर्जापुर, इलाहाबाद और लखनऊ के डीआईजी रह चुके हैं।
योगी ने खोजा योगी DGP, 36 साल की नौकरी में सिर्फ तीन कमरों का घर बना पाए सुलखान
रहने के लिए सिर्फ तीन कमरे का एक फ्लैट। लखनऊ के अलकनंदा अपार्टमेंट में। गृह जनपद बांदा में महज ढाई एकड़ जमीन। यबतौर आइपीएस 36 साल की नौकरी में इतनी संपत्ति जुटा पाए हैं यूपी पुलिस के नए सुलतान बने सुलखान सिंह। आईएएस-आईपीएस की बात छोड़िए, आज जब बाबुओं के भी करोड़ों के जायदाद खड़ी कर लेने की खबरें आती हैं, तब सुलखान सिंह जैसे अफसर मिसाल पेश करते हैं। सुलखान यूपी के उन बिरले आईपीएस हैं, जिन्होंने नेताओं के पैर छूकर पोस्टिंग के जमाने में भी अपनी रीढ़ की हड्डी सही-सलामत रखी है। कल्याण सिंह के जमाने में अगर पुलिस का इकबाल बुलंद हो सका था, वह उसलिए कि डीजीपी की कुर्सी प्रकाश सिंह जैसे तेजतर्रार और ईमानदार अफसर के हाथ में थी। जो जिलों और थानों की नीलामी नहीं लगाते थे। आज सुलखान सिंह के हाथ में यूपी पुलिस की कमान है। उम्मीद है कि अब थाने नहीं बिकेंगे। जैसा कि सपा सरकार में खबरें आती थीं। दारोगाओं को योग्यता नहीं बल्कि माल कमाकर देने की योग्यता से थाने मिलते थे।
सुलखान सिंह की ईमानदारी ही अब तक उनकी करियर की राह में रोड़ा बनी रही। अगर 2007 के बसपा राज में सुलखान सिंह मुलायम के समय यूपी पुलिस भर्ती घोटाले की पोल न खोलते तो अब तक कब के डीजीपी बन चुके होते। भला सोचिए, यूपी के आइपीएस अफसरों की सीनियारिटी लिस्ट में नंबर 1 पर नाम है। मगर अखिलेश यादव के राज में उनसे आठ सीढ़ी नीचे बैठे जावीद अहमद को डीजीपी की कुर्सी मिल गई। जावीद अहमद भी काबिल अफसर माने जाते रहे हैं मगर ऊपर के सात अफसरों को नजरअंदाज कर डीजीपी पद पर बैठाना सरकार की विशेष रुचि की तरफ इशारा करता है। जब 2012 में अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने तो भर्ती घोटाले की जांच करने की कीमत चुकानी पड़ी। आम तौर पर उन्नाव के जिस पुलिस ट्रेनिंग स्कूल में डीआइजी स्तर के अफसर की तैनाती होती थी, वहां सुलखान सिंह को तब भेजा गया, जब वह एडीजी रैंक के अफसर थे। यहां काम करते हुए 10 अप्रैल 2015 को प्रमोशन पाकर डीजी मिले। जिसके बाद डीजी ट्रेनिंग की कुर्सी मिली। भले ही अफसर इस पद को अपने लिए सजा मानते हों मगर सुलखान सिंह ने ट्रेनिंग के तौर-तरीकों को सुधारने में खास भूमिका निभाई। यानी जो भी जिम्मेदारी सरकार ने दी, उससे हरसंभव न्याय करने की कोशिश की।
आइआइटी से बीटेक हैं सुलखान
सुलखान सिंह ने आइआइटी रुड़की से बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल किए। फिर एफआइआइ की। विधि स्नातक भी हुए। फिर सिविल सेवा की तैयारी की तो भारतीय पुलिस सेवा में चुने गए। वर्ष 1980 बैच के सुलखान सिंह की नौकरी ट्रेनिंग आदि के बाद 1983 में कन्फर्म हो गई। तब से लगातार कई जिम्मेदारियां संभालते गए। 2001 में लखनऊ में डीआइजी रहने के दौरान कई भ्रष्ट पुलिस अफसरों पर ट्रांसफर का हंटर चलाकर भी सुर्खियों में रहे।
स्वीटी कांड के खुलासे से हीरो बने थे सुलखान सिंह
वरिष्ठ पत्रकारों के अनुसार बताया गया कि वो दौर था, जब कांग्रेस की सरकार थी। उस समय कमला नगर की एक युवती का पूरे आगरा में हल्ला था। स्वीटी की जुगाड़ पुलिस प्रशासन से लेकर राजनीतिक लोगों तक थी। उसके संबंध राजधानी तक थे। सबको अपने इशारों पर नचाने वाली स्वीटी सुलखान सिंह के चंगुल में फंसी, तो निकल नहीं पाई। सुलखान सिंह ने स्वीटी की गिरफ्तारी की, वो भी बिना एसएसपी और डीआईजी को बताए। हालांकि राजनीतिक दबाव बहुत अधिक था, लेकिन निर्भीक, निडर एसपी सिटी सुलखान सिंह के आगे किसी की नहीं चली।
आगरावालों के दिल में बनाई जगह
उनके लम्बे पत्रिकारिता के कार्यकाल में सुलखान सिंह पहले ऐसे एसपी सिटी आगरा में रहे, जिन्होंने जनता के दिल में जगह बनाई। सुलखान सिंह की कार्यशैली से जनता इतनी प्रभावित थी, कि जब 1989 के अंत में उनका तबादला मेरठ हुआ, तो लोगों को दुख हुआ। लोग चाहते थे, कि वे आगरा में रुकें। पहले ऐसे अधिकारी थी, जिनकी विदाई के लिए जनता ने चौराहों पर रोक रोक कर उन्हें विदाई दी।
इन मामलों के एक्सपर्ट हैं सुलखान सिंह
सुलखान सिंह वैसे तो अपराधियों के लिए काल हैं, लेकिन उनकी खासियत ये है, कि वे पारिवारिक मामलों के एक्सपर्ट हैं। आगरा में परिवार से जुड़़े कई मामले उनके द्वारा इतनी आसानी से सुलझाए गए, कि लोग उनके कायल हो गए। कई मामलों में तो वे सामाजिक दृष्टि से निर्णय लेते हैं।