लखनऊ। मधुपत्र या मधुरगुणा नाम से भी जाना जाने वाला स्टीवियाआम शक्कर से लगभग 25 से 30 गुणा ज्यादा मीठा होता है। इसके बावजूद डायबिटीज को दूर करने के लिए महत्वपूर्ण औषधीय है। खास बात यह है कि इसे घर के बगिया में भी उगाया जा सकता है। इसकी खेती से किसान एक साल पौध रोपण कर पांच साल तक लाभ कमा सकते हैं। इसकी खेती महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश में प्रमुख रूप से होती है।
यूपी में आठ साल पूर्व कानपुर कृषि विश्व विद्यालय ने इसकी खेती अपने संरक्षण में फर्रुखाबाद और फिर कानपुर में करवाई थी, लेकिन खरीदारों की कमी के कारण किसानों ने इससे मुंह मोड़ लिया लेकिन अब वैसी परिस्थिति नहीं है। किसान आसानी से इसका स्थानीय बाजार भी बना सकते हैं, जहां उत्पाद हाथों-हाथ बिक जाएगा।
इन रोगों में है फायदेमंद
शून्य कैलोरी स्वीटनर वाला स्टीविया दिल के रोग, मोटापा, ब्लड प्रेशर, हाइपर टेंशन, दांतों, वजन कम करने, गैस, पेट की जलन, त्वचा रोग और सुंदरता बढ़ाने के लिए भी फायदेमंद होता है। समान्य अवस्था में इससे निकाला जाने वाला एक्सट्रैक्ट शक्कर से लगभग 300 गुणा ज्यादा मीठा होता है। इस कारण इसका उपयोग चाय आदि में मीठा के रूप में डायबिटिज के रोगी करते हैं।
तराई क्षेत्रों में हो सकता है अच्छा उत्पाद
इस संबंध में कानपुर कृषि विश्व विद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. मुनीष कुमार ने बताया कि स्टीविया रिबाउडियाना मूलतः मध्य पैरग्वे का पौधा है। इसकी खेती तराई क्षेत्रों लखीमपुर, श्रावस्ती, देवरिया, गोरखपुर, कुशीनगर आदि जिलों में की जा सकती है। उन्होंने बताया कि इसमें इतनी औषधीय गुण है कि इसके लिए स्थानीय बाजार भी विकसित किया जा सकता है। इसके अलावा डायबिटिज से संबंधित दवा बनाने वाली आयुर्वेदिक कंपनियां भी इसका उत्पाद खरीद रही हैं।
स्टीविया की खेती की विधि
डॉ. मुनीष कुमार ने बताया कि इसकी खेती के लिए पानी की आवश्यकता ज्यादा होती है। स्टीविया की खेती एक पंचवर्षीय फसल के रूप में की जाती है, क्योंकि एक बार रोपण के पश्चात या फसल पांच वर्ष तक खेत में रहेगी। इसकी रोपाई अधिक ठंड और अधिक गर्मी का समय छोड़कर कभी भी की जा सकती है। खेत की अच्छी प्रकार गहरी जुताई करके उसमें तीन टन केंचुआ खाद अथवा छह टन कम्पोस्ट खाद के साथ-साथ 120 किलोग्राम प्रॉम जैविक खाद मिला दी जाती है। प्रति एकड़ 150 से 200 किलोग्राम नीम की पिसी हुई खल्ली मिलाकर जड़ों के विकास की दृष्टि से खेत में 1 से 1.5 फीट ऊंची मेढ़े बनाई जाती है। इन मेढ़ों की चौड़ाई लगभग 2 फीट रखी जाती है। एक एकड़ खेत में 28000 से 30000 तक पौधे लगाए जा सकते हैं।
स्टीविया की प्रमुख प्रजातियां
वर्तमान में कृषिकरण की दृष्टि से स्टीविया की मुख्यतया तीन प्रजातियां प्रचलन में है। एसआरबी- 123 की वर्ष भर में 5 कटाइयां ली जा सकती है। एसआरबी- 512 प्रजाति ऊत्तरी भारत के लिए ज्यादा उपयुक्त है। एसआरबी- 128 कृषिकरण की दृष्टि से स्टीविया की या किस्म सर्वोत्तम मानी जाती है।
फसल पर होने वाले प्रमुख रोग तथा उनका नियंत्रण
इसमें भूमि में बोरोन तत्व की कमी के कारण लीफ स्पॉट का प्रकोप हो सकता है। इसके निदान हेतु छह प्रतिशत बोरेक्स का छिड़काव किया जा सकता है। वैसे नियमित अंतरालों पर गौमूत्र अथवा नीम के तेल को पानी में मिश्रित करके उसका छिड़काव करने से फसल पूर्णतया रोगों अथवा कीटों/कृमियों से मुक्त रहती है। रोपण के लगभग चार माह के उपरान्त स्टीविया की फसल प्रथम कटाई के लिए तैयार हो जाती है। कटाई का कार्य पौधों पर फूल आने के पूर्व ही कर लिया जाना चाहिए।
कुल उपज तथा प्राप्तियां
एक बहुवर्षीय स्टीविया की चार कटाईयों में औसतन वर्ष भर में लगभग तीन टन सूखे पत्ते प्राप्त हो जाते हैं। इनकी बिक्री दर 80 से 135 रुपये प्रति किलोग्राम तक हो सकती है। इस हिसाब से प्रतिवर्ष किसान को 2.5 लाख रुपये प्रति एकड़ की प्राप्तियां होगी। इस फसल से किसान को पांच वर्षों में लगभग 8.40 लाख रुपये लाभ होना अनुमानित है।