IPS सुलखान को योगी राज में ‘न्याय’, क्यों हटाए गए डीजीपी जावीद अहमद

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सपाराज में ईमानदारी की कीमत चुकाने वाले यूपी के सीनियर मोस्ट IPS सुलखान सिंह को अब न्याय मिला है। सपाराज में उनसे चार साल जूनियर जावीद को डीजीपी बना दिया गया था

लखनऊ। थोड़ी देर से आए, लेकिन दुरुस्त आए। दुरुस्त इसलिए कि जमाने बाद यूपी की खाकी वर्दी को इकबाल मिला है। जिस वर्दी पर मुजफ्फरनगर के दंगों से लेकर मथुरा कांड तक के घिनौने दाग लगे थे, उस वर्दी को आज नए मुखिया के तौर पर सुलखान सिंह जैसा ईमानदार चेहरा मिला है। यह वो सुलखान हैं, जिन्होंने सपा सरकार में हुए पुलिस भर्ती घोटाले की जांच कर ऐसा सच उजागर किया किया कि  मुलायम सिंह और शिवपाल खार खा बैठे। नतीजा अगली बार  सपा सरकार आने पर उन्हें सजा के तौर पर पिछले पांच साल प्राइमपोस्टिंग से कोसों दूर रखा गया। यूपी के सबसे सीनियर इस आईपीएस अफसर को बहुत पहले ही डीजीपी बन जाना चाहिए था, मगर उन्हें अखिलेश सरकार ने कभी उन्नाव के दो कमरे वाले ऑफिस में तो कभी ट्रेनिंग जैसे महत्वहीन महकमे में भेजकर हमेशा हाशिए पर रखा। इंडिया संवाद से बातचीत में एक सीनियर आईपीएस कहते हैं कि सुलखान सिंह की वरिष्ठता व काबिलियत के साथ हमेशा अन्याय होता रहा, अब जाकर उन्हें न्याय मिला है। हालांकि सुलखान सिर्फ पांच महीने ही पद संभाल पाएंगे, क्योंकि सितंबर में रिटायरमेंट है।

पुलिस भर्ती घोटाले की खोल चुके हैं पोल

यूपी में 2007 से पहले मुलायम सिंह के शासनकाल में कांस्टेबल भर्ती घोटाला हुआ था। भर्ती घोटाले के तार शिवपाल यादव तक जुड़े थे। पैसे लेकर  जाति विशेष के अभ्यर्थियों को नौकरी दिए जाने की शिकायतों पर 2007 में आई बसपा सरकार में मुख्यमंत्री मायावती ने जांच कराई। तत्कालीन सीनियर आईपीएस शैलजाकांत मिश्रा की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने जांच की। इस जांच कमेटी में 1980 बैच के सुलखान भी शामिल रहे। वरिष्ठ अफसरों की कमेटी ने पुलिस भर्ती में मानकों को दरकिनार करने का खेल पकड़ा। कमेटी की सिफारिशों पर उस वक्त कई सीनियर पुलिस अफसरों को सस्पेंड होना पड़ा था। नतीजा था कि जब 2012 में समाजवादी पार्टी की सरकार सत्ता में आई तो पहले से खार खाए मुलायम और शिवपाल ने सुलखान सिंह से बदला लेने में देरी नहीं की। उन्हें महत्वहीन पद पर पहले उन्नाव के ट्रेनिंग स्कूल भेजा गया। जबकि सबसे सीनियर आईपीएस सुलखान सिंह रहे। फिर बाद में डीजी ट्रेनिंग बनाया गया।

क्यों हटाए गए डीजीपी जावीद अहमद

सपा सरकार के कार्यकाल में पुलिस का इकबाल गिरता रहा। आम जन की बात छोड़िए, गुंडे पुलिसवालों पर भी हमला करते रहे। बरेली में पशुतस्करों ने सब इंस्पेक्टर मनोज मिश्रा को सरेआम गोलियों से उड़ा दिया तो पिछले साल मथुरा के जवाहरबाग कांड में एसपी सिटी मुकुल मिश्रा की भी रामवृक्ष यादव ने हत्या कर दी। सपा  सरकार में पुलिस के संरक्षण में अवैध बूचड़खाने चलते रहे। पहले डीजीपी जगमोहन यादव पुलिस का इकबार बुलंद नहीं  कर सके। फिर जावीद अहमद डीजीपी बने तो भी वे कानून-व्यवस्था को दुरुस्त नहीं कर सके। जब एक महीने पहले भाजपा सरकार सत्ता में आई और 19 मार्च को योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने फिर भी कई संवेदनशील जिलों में अपराध कम नहीं हुआ। संभल और सहारनपुर में सांप्रदायिक हिंसा की कोशिशें हुईं। दूसरी बात नई सरकार में डीजीपी बदलने की बात लगातार चल रही थी। चुनाव से पहले भी भाजपा जावीद अहमद को हटाने की मांग कर रही थी। इन सब बिंदुओं को देखते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आखिरकार सबसे सीनियर मोस्ट सुलखान सिंह की डीजीपी  पद पर ताजपोशी की। इससे पहले सपा मुखिया मुलायम सिंह से नजदीकियां होने के कारण जावीद अहमद को जूनियर होने के बाजवदू कई वरिष्ठों के सिर पर बतौर डीजीपी बैठा दिया गया था।  

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