
कमल हासन की ‘अप्पू राजा’ (1989) को इस भेड़ चाल से अलग रखा जा सकता है। लेकिन पिछले साल आयी कंगना रनोट की ‘तनु वेड्स मनु रिर्टन्स’ से सही मायने में लगा कि एक ही इंसान जब किसी फिल्म में दो अलग-अलग किरदार निभाता है तो बात बेहतरीन मेकअप और स्पेशल इफेक्ट्स से कहीं आगे तक जाती है।
एक जमाने में तो डबल रोल के बारे में ये भी कहा जाता था कि फलां हीरो ने इसके लिए प्लास्टिक सर्जरी कराई है या हमशक्ल बनने के लिए मास्क पहना है। शाहरुख खान ने भी अपनी नई फिल्म ‘फैन’ में डबल रोल किया है। तो क्या ‘फैन’ उसी पुराने ढर्रे पर रटी-रटाई फार्मूले वाली फिल्म है? क्या शाहरुख ने कंगना की ही तरह वाकई दो अलग-अलग किरदारों को एक ही खाके में रह कर ठीक से जिया है? क्या फिल्म की कहानी में वाकई इतनी जान है कि दर्शक इस बिना गीत-संगीत और हीरोइन वाली फिल्म को आसानी से पचा सकेंगे? क्या शाहरुख खान ने अपने ‘सेफ जोन’ से बाहर आकर कोई गल्ती तो नहीं की? आइये बताते हैं।
ये कहानी है दिल्ली में रहने वाले एक युवक गौरव चान्ना (शाहरुख खान) की। इकहरे बदन का गौरव किसी एंगल से फिल्म सुपरस्टार आर्यन खन्ना (शाहरुख खान) नहीं लगता। सिवाय इसके कि वह आर्यन की अच्छी नकल उतार लेता है। उसके डॉयलाग्स वह अच्छे से बोल लेता है। उसकी शक्ल भी आर्यन से बस थोड़ी-सी ही मिलती-जुलती है, बावजूद इसके आर्यन ही उसकी दुनिया है। वो खुद को जूनियर आर्यन खन्ना कहता है और बस उसकी ही यादों में खोया रहता है।
एक दिन जब गौरव, आर्यन से उसके जन्मदिन पर मिलने उसके घर मुंबई जाता है, तो उसे निराशा हाथ लगती है। हजारों प्रशंसकों की भीड़ में खोया गौरव, आर्यन से मिलने की सारी हदें पार कर कुछ ऐसा करता है, जो आर्यन को पसंद नहीं आता। आर्यन, गौरव को पुलिस के हवाले कर देता है और बस यहीं से गौरव, आर्यन का दुश्मन बन जाता है। गौरव दिल्ली वापस आकर आर्यन को मटियामेट करने की योजना बनाने लगता है। वह आर्यन के पीछे-पीछे लंदन तक पहुंच जाता है और अपनी योजना के पहले प्रयास के तहत वह आर्यन को सलाखों के पीछे तक पहुंचा देता है। आर्यन के स्टारडम को दूसरा तगड़ा झटका तब लगता है, जब गौरव उसकी शक्ल का फायदा उठाकर एक अरबपति व्यक्ति की महफिल में एक युवती के साथ बदतमीजी करता करता है।
इस फजीहत के बाद आर्यन को मीडिया और प्रशंसकों को जवाब देना भारी पड़ जाता है। पुलिस भी उसकी कुछ मदद नहीं कर पाती। लेकिन एक दिन जब गौरव, आर्यन के घर में घुसकर उसकी पत्नी बेला (वलुशा डिसूजा) और बच्चों तक के करीब पहुंच जाता है तो आर्यन से रहा नहीं जाता। वह ठान लेता है गौरव तो उसके घर में घुसकर मारेगा, क्योंकि वो भी तो दिल्ली का ही है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि निर्देशक मनीष शर्मा ने अपने सहयोगी लेखक एवं निर्देशक (इशकजादे) हबीब फैजल के साथ दो किरदारों की ‘गुत्थम-गुत्थी’ का अच्छा चित्रण किया है। गौरव और आर्यन, तू डाल डाल मैं पात पात की तर्ज पर एक दृश्य से दूसरे दृश्य तक बांधे रखते हैं। लेकिन इंटरवल के बाद हिचकोले खाती इस कहानी में आपके साथ घर जाने का काम करता है गौरव चान्ना।
इसकी वजह है शाहरुख खान का अभिनय। लंबे समय बाद वह अपने तेवर में दिखे हैं। यहां उनकी अभिनय अदायगी का उनकी पिछली किसी से तुलना करना बेमानी-सा लग रहा है। नहीं, ये चक दे इंडिया वाला कबीर खान नहीं है। स्वदेस वाला मोहन भार्गव भी नहीं और तमाम रोमांटिक अदाओं लिए रहने वाला राज आदि भी नहीं है। ये बिल्कुल अलग है और शायद शाहरुख इसके बारे में कहते आ रहे हैं कि यह फिल्म ‘जरा हटके’ नहीं काफी ‘हटके’ है। और ये ‘हटके’ केवल गौरव के किरदार की वजह से है। ऐसा लगता है कि मनीष-हबीब ने सारी मेहनत केवल इसी किरदार के लिए की है, क्योंकि कई जगहों पर गौरव के सामने आर्यन बहुत बेबस-सा नजर आता है।
हालांकि आर्यन का किरदार काफी जिम्मेदाराना, सहज और आत्मविश्वास से लबरेज है, लेकिन जब गौरव उसे माफी मांगने की बात पर चुनौती देता है तो लगता है कि फैन सुपरस्टार पर भारी पड़ रहा है। ऐसी स्थिति में आप किसी एक को चुनते हैं, लेकिन दूसरे को पूरी तरह से खारिज भी नहीं कर सकते। बावजूद इसके यह फिल्म जॉन वू की ‘फेस ऑफ’ (1997) जैसा असर पैदा नहीं करती, जिसमें निकोलस केज और जॉन ट्रिवोल्टा को एक ही चेहरे के साथ दो बेहद अलग किस्म के किरदार निभाने पड़ते हैं। यह फिल्म अपने आप में एक ऐसी अनोखी फिल्म है, जिसमें केज-जॉन ने एक ही खाके में रहकर दो अलग-अलग किरदारों को जिया है।
यहां अच्छी बात ये भी है कि डबल रोल वाली ‘फैन’ बॉलीवुड के पुराने ढर्रे से कोसों दूर है। यहां डबल रोल का एक मकसद है, जिसे शाहरुख खान ने बड़ी सहजता से पूरा किया है। बेशक, उनके लिए गौरव का किरदार ही सबसे कठिन रहा होगा। लेकिन मनीष शर्मा से उम्मीद थी कि वह गौरव को और मौके देंगे, ताकि वह आर्यन को परेशान करे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया है। ये एक बात है, जो शायद दर्शकों की भूख शांत न कर पाए। हालांकि उन्होंने इन दोनों ही किरदारों के बीच एक बेहतर तालमेल भी बनाए रखा है, जिसे सही और लगत की सीमा लांघी न जा सके। आप स्वतंत्र हैं कि आपको आर्यन पसंद है या गौरव और यही बात मनीष के हक में काफी हद तक जाती भी है। और एक बात कि ये केवल शाहरुख के फैन्स की फिल्म नहीं है। अगर आप अच्छी एक्टिंग और थोड़े-बहुत मनोरंजन के मुरीद हैं तो ये फिल्म आपको निराश नहीं करेगी।
इस फिल्म का एक अंतिम संवाद, जिसमें गौरव कहता है… तूने सबकुछ बोल दिया, लेकिन सॉरी नहीं बोला… आर्यन बस उसे देखता रह जाता है… फिर गौरव कहता है तू नहीं समझेगा…
सितारे : शाहरुख खान, वलुशा डिसूजा, श्रेया पिल्गावकर, सयानी गुप्ता, योगेन्द्र टिक्कू, दीपिका अमीन
निर्देशक : मनीष शर्मा
निर्माता : आदित्य चोपड़ा/यशराज फिल्म्स
संगीत : विशाल-शेखर
गीत : वरुण ग्रोवर
लेखक : हबीब फैजल
रेटिंग : 3 स्टार