मुंबई। ओम पुरी का शुक्रवार सुबह दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। वह 66 साल के थे। उन्होंने 100 से ज्यादा हिंदी और 20 हॉलीवुड मूवी में काम किया था। उन्हें ‘अर्ध सत्य’ और ‘आरोहण’ मूवी के किरदार के लिए बेस्ट एक्टर के नेशनल अवॉर्ड से नवाजा गया। 1990 में पद्मश्री भी मिला था। ओम की का बचपन तंगहाली में गुजरा था। उनको ढाबे में काम करना पड़ा। यहां तक कि चाय की दुकान में गिलास भी साफ करने पड़े। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में पुरी के सिर पर चोट के निशान मिले हैं। गुरुवार शाम उनकी पत्नी नंदिता से बहस भी हुई थी। बता दें कि इन दिनों वे सलमान के साथ ‘ट्यूबलाइट’ की शूटिंग में बिजी थे। जून में ईद पर रिलीज होने वाली कबीर खान की इस मूवी में ओम एक गांधीवादी नेता का रोल कर रहे थे। कल शाम को वे फिल्म प्रोड्यूसर खालिद रिजवी के साथ थे।
- फिल्म प्रोड्यूसर खालिद रिजवी ने बताया, ‘मैं गुरुवार शाम को साढ़े 5 बजे उनके घर गया था। वहां उनका एक इंटरव्यू चल रहा था। इंटरव्यू खत्म होने के बाद उन्होंने मुझसे कहा कि एक प्रोग्राम में जाना है। मुझे साथ चलने को कहा। मेरे मना करने पर बोले- अपनी गाड़ी से छोड़ दूंगा।’
- ‘वे नंदिता के घर गए। यहां वो बेटे इशांत से मिलने आए थे। नंदिता से उनकी काफी बहस हुई। नीचे उतरकर उन्होंने इशांत को फोन किया लेकिन वो किसी पार्टी में था। फिर वो गाड़ी में ही उसका इंतजार करने लगे। इस बीच उन्होंने ड्रिंक भी लिया।’
- – रिजवी के मुताबिक, ‘इसके बाद वो मुझे लेकर मनोज पाहवा के घर भी गए थे। वहां भी उनकी किसी से पैसों को लेकर बहस हुई। चूंकि मैं बाहर था। इसलिए ये नहीं पता कि बहस किससे हुई। बाहर आए तो काफी भावुक थे।’
- ‘इसके बाद मैंने उन्हें घर छोड़ा। रास्ते में मैंने देखा तो उनका पर्स मेरी कार में गिर गया था। पर्स देने के लिए सुबह उनके ड्राइवर को फोन किया तो उसने बताया कि वो दरवाजा नहीं खोल रहे है।’
पीएम ने ट्वीट कर दुख जताया
- पीएम मोदी ने ओम पुरी के निधन पर दुख जताया। फिल्म और थिएटर में उनके काम और योगदान को याद किया।
- मधुर भंडारकर ने कहा कि यकीन नहीं होता कि इतना एक्टिव इंसान इस तरह अचानक चला गया, बहुत दुखद बात है, फिल्म इंडस्ट्री में उनका बहुत कमाल का योगदान रहा है।
- डेविड धवन ने उन्हें याद करते हुए कहा- “बड़ा धक्का लगा उनकी डेथ की न्यूज सुनकर। 1974 में हम रूम मेट रह चुके थे। वो ब्रिलियंट एक्टर थे।”
- शबाना आजमी ने कहा- “उनसे करीब की दोस्ती रही थी, उनके साथ कई फिल्मों में काम किया, उनका निधन होना बहुत अफसोस की बात है।”
- रजा मुराद ने कहा- “ज्यादा शराब पीने से ओम पुरी की सेहत खराब हो गई थी। बेहद आम शक्ल सूरत होने के बावजूद उन्होंने अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाया।”
- महेश भट्ट ने ट्वीट कर ओम को श्रद्धांजलि दी। लिखा- “अलविदा ओम! आज तुम्हारे साथ मेरी भी जिंदगी का एक हिस्सा चला गया। मैं उन लम्हों को कैसे भूल सकता हूं, जब हमने फिल्म और जिंदगी की बातें करते हुए कई रातें गुजारी थीं।
कौन थे ओम पुरी?
- ओम पुरी का जन्म 18 अक्टूबर, 1950 को अंबाला में एक पंजाबी परिवार में हुआ था। हिंदी फिल्मों के अलावा पाकिस्तान और हॉलीवुड की फिल्मों में काम किया।
- पुरी ने पुणे के फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII) से ग्रैजुएशन किया।
- उन्होंने दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) से भी पढ़ाई की। यहां नसीरुद्दीन शाह उनके क्लासमेट थे।
- उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने ननिहाल पंजाब के पटियाला से पूरी की। उन्होंने 1976 में पुणे के FTII से ट्रेनिंग ली थी।
- -बाद में ओमपुरी ने अपना निजी थिएटर ग्रुप ‘मजमा’ बनाया था।
- दो बार मिला नेशनल अवॉर्ड
- – उन्हें दो बार नेशनल अवॉर्ड मिला।
- – पहली बार 1982 में ‘आरोहण’ के लिए, वहीं दूसरी बार 1984 में ‘अर्ध सत्य’ मूवी के लिए बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड मिला।
- दो शादी की थींं ओम ने
- – ओम पुरी की पर्सनल लाइफ कई बार विवादों में रही।
- – उन्होंने दो शादी की थीं। पहली वाइफ का नाम सीमा है। इसके बाद उन्होंने 1993 में नंदिता पुरी का हाथ थामा। सीमा ने नंदिता पर उनका घर तोड़ने के आरोप लगाया था।
- – नंदिता से एक बेटा है जिसका नाम ईशान है। नंदिता ने ओम पर घरेलू हिंसा का आरोप लगाया था, इसके बाद 2013 में दोनों अलग हुए।
- कैसा रहा फिल्मी सफर?
- – साधारण चेहरे के बावजूद ओम पुरी अपनी खास एक्टिंग, आवाज और डायलॉग डिलिवरी के लिए जाने जाते थे।
- – 1976 में आई उनकी पहली फिल्म ‘घासीराम कोतवाल’ थी।
- – अमरीश पुरी, स्मिता पाटिल, नसीर और शबाना आजमी के साथ मिलकर उन्होंने कई यादगार फिल्में दीं।
- – 1980 में आई ‘भवनी भवई’ और ‘आक्रोश’, 1981 में ‘सद्गति’, 1982 में ‘अर्ध सत्य’ और ‘डिस्को डांसर’, 1986 में आई ‘मिर्च मसाला’ और 1992 की ‘धारावी’ से शोहरत मिली।
- – सनी देओल के साथ ‘घायल’ औऱ 1996 में गुलजार की ‘माचिस’ में उन्होंने सिख आतंकवादी का किरदार निभाया। ‘माचिस’ में बोला गया उनका डायलॉग ‘आधों को 47 ने लील लिया और आधों को 84 ने’ काफी मशहूर हुआ।
- – ‘जाने भी दो यारो’, ‘हेरा-फेरी’, ‘चाची 420’, ‘मालामाल वीकली’, ‘सिंग इज किंग’, ‘बिल्लू’ में पुरी कॉमिक रोल में नजर आए।
- – विशाल भारद्वाज की ‘मकबूल’ में नसीरुद्दीन शाह के साथ पुरी एक ऐसे पुलिसवाले के रोल में थे जो कुंडली बनाने में महारत रखता है।
- – ओम पुरी ने सीरियल ‘भारत एक खोज’, ‘कक्काजी कहिन’, ‘सी हॉक्स’, ‘अंतराल’, ‘मि. योगी’, ‘तमस’ और ‘यात्रा’ में भी काम किया।
- – 2004 में उन्हें ऑनरेरी ऑफिसर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर का अवॉर्ड दिया गया।
अपने दमदार अभिनय और संवाद अदायगी से ओमपुरी ने लगभग तीन दशक से दर्शकों को अपना दीवाना बनाया है लेकिन कम लोगों को पता होगा कि उन्हें अपनी पहली नौकरी में सिर्फ 5 रुपये मिलते थे। सात साल की उम्र में चाय की दुकान में काम करने से लेकर भारतीय सिनेमा में मशहूर कलाकार के दर्जे तक पहुंचने वाले ओमपुरी की यात्रा बेहद कठिन परिस्थितियों से भरी है।
चोरी के आरोप में पिता गए जेल, ओम पुरी को करनी पड़ी नौकरी
उनकी जीवनी ‘अनलाइकली हीरो:ओमपुरी’ के अनुसार 1950 में पंजाब के अम्बाला में जन्मे इस महान कलाकार का शुरुआती जीवन अत्यंत गरीबी में बीता और उनके पिता को दो जून की रोटी कमाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती थी। ओम पुरी के पूर्व पत्नी नंदिता सी पुरी द्वारा लिखी गई इस किताब में कहा गया है कि टेकचंद (ओमपुरी के पिता) बहुत ही तुनकमिजाज और गुस्सैल स्वभाव के थे और लगभग हर छह महीने में उनकी नौकरी चली जाती थी। उन्हें नई नौकरी ढूंढ़ने में दो महीने लगते थे और फिर छह महीने बाद वह नौकरी भी चली जाती। वे गरीबी के दिन थे जब परिवार को अस्तित्व बनाए रखने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती।
रेलवे स्टोर में चोरी के आरोप में पिता के गिरफ्तार होने के बाद ओमपुरी एक चाय की दुकान में हेल्पर के रूप में काम करने लगे ओमपुरी और उनके भाई वेद द्वारा कुछ धन जुटाने के लिए छोटा मोटा काम शुरू करने से पहले उनका परिवार बहुत दिनों तक पड़ोसियों के रहमो करम पर जीवित रहा। ओम पुरी ने खुद एक इंटरव्यू में बताया था कि 7 साल की उम्र में वह चाय की दुकान पर ग्लास धोते थे। उस दौरान उन्हें इस काम के लिए 5 रुपये प्रति माह मिला करते थे। उन्होंने यह भी बताया कि उनके पिता को एक झूठे केस में तीन महीने जेल काटनी पड़ी।
पहली फिल्म में काम करने पर मिला मूंगफली
शुरुआत से ही ओमपुरी का रुझान रंगमंच की ओर था। 1970 के दशक में वे पंजाब कला मंच नामक नाट्य संस्था से जुड़ गए। लगभग तीन वर्ष तक पंजाब कला मंच से जुड़े रहने के बाद उन्होंने दिल्ली में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (NSD) में दाखिला ले लिया। इसके बाद अभिनेता बनने का सपना लेकर उन्होंने पुणे फिल्म संस्थान (FTII) में दाखिला ले लिया।
1976 में पुणे फिल्म संस्थान से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद ओमपुरी ने लगभग डेढ़ वर्ष तक एक स्टूडियो में अभिनय की शिक्षा भी दी। बाद में ओमपुरी ने अपने निजी थिएटर ग्रुप “मजमा” की स्थापना की। ओमपुरी ने अपने सिने करियर की शुरुआत विजय तेंदुलकर के मराठी नाटक पर बनी फिल्म घासीराम कोतवाल के साथ की थी। ओम पुरी ने एक बार दावा किया था कि उन्हें अपने बेहतरीन काम के लिए मूंगफली दी गई थी।
लगातार दो साल जीता नेशनल अवॉर्ड
साल 1980 में प्रदर्शित फिल्म ‘आक्रोश’ ओम पुरी के सिने करियर की पहली हिट फिल्म साबित हुई। गोविन्द निहलानी निर्देशित इस फिल्म में ओम पुरी ने एक ऐसे व्यक्ति का किरदार निभाया जिस पर पत्नी की हत्या का आरोप लगाया जाता है। फिल्म में अपने दमदार अभिनय के लिये ओमपुरी सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए।
1980 के दशक में अमरीश पुरी, नसीरुद्दीन शाह, शबाना आजमी और स्मिता पाटिल के साथ ओम पुरी उन मुख्य एक्टर्स में शुमार हैं जिन्होंने उस समय की कही जाने वाली आर्ट फिल्मों में काम किया था। ओम पुरी को फिल्म आरोहण (1982) और अर्ध सत्य (1983) के लिए बेस्ट एक्टर का नेशनल अवार्ड भी मिला था।