नई दिल्ली । देश में मध्याह्न भोजन के क्रियान्वयन पर सवाल उठाते हुए नियंत्रण एवं महालेखा परीक्षक ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा कि अधिकतर राज्यों ने भोजन की गुणवत्ता का निरीक्षण नहीं किया, साथ ही गरीब बच्चों की पहचान के लिए कोई मानदंड नहीं बनाए गए जिससे इसके महत्वपूर्ण उद्देश्य केवल कागजों पर ही रह गए। साल 2009..10 से 2013..14 में मध्याह्न भोजन योजना की निष्पादन लेखापरीक्षा पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक :कैग: की रिपोर्ट के अनुसार, कम से कम नौ राज्यों के नमूना जांच किए गए विद्यालयों में बच्चों को निर्धारित पोषण नहीं दिया गया। दिल्ली में इस उद्देश्य के लिए लगाई गई एजेंसी क्षरा जांचे गए 2101 में से 1876 नमूने : 89 प्रतिशत: निर्धारित पोषक मानको को पूरा करने में विफल रहे। असम, बिहार, दमन दीव, गोवा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटन, मणिपुर और लक्षद्वीप में बच्चों को प्रदान किए जा रहे भोजन की गुणवत्ता जांचने में शिक्षक शामिल नहीं थे। छत्तीसगढ़, मेघालय, सिक्किम, त्रिपुरा में नमूना जांच किए गए विद्यालयों में बच्चों को प्रदान किए जा रहे पके हुए भोजन में प्रदत्त न्यूनतम कैलोरी तथा प्रोटीन सुनिश्चित करने के लिए किसी रजिस्टर की व्यवस्था नहीं की जा रही थी। रिपोर्ट में कहा गया कि नमूने के तौर पर जांच गए विद्यालयों में निर्धारित निरीक्षण नहीं किए गए थे जिससे खाद्यान्नों की स्वच्छ औसत गुणवत्ता तथा दिए गए मध्याह्न भोजन की गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके। लेखापरीक्षा में नमूना जांच में किए गए अधिकतर विद्यालयों में बुनियादी सुविधाओं जैसे रसोई शैडो, समुचित बर्तन, पेयजल सुविधा का अभाव था। खुले स्थानों पर अस्वास्थ्यकर स्थिति में भोजन बनाने के कई उदाहरण थे जिनसे बच्चों को स्वास्थ्य खतरा था। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने मार्च 2014 तक विद्यालयों के लिए रसोई घर शैडो की 10,01,054 इकाइयां स्वीकृत की गई थी और इस दौरान केवल 6,70,595 इकाइयों का निर्माण किया गया जो महज 67 प्रतिशत है।