
रिजर्व बैंक ने सूची के साथ दाखिल हलफनामे में कहा है, ”विभिन्न कारणों से ऋण लौटाने में चुक हुई है, उन खातों का ब्योरा सार्वजनिक करने से कारोबार पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है और यह कारोबार को फिर से मजबूत करने के बजाए उनकी विफलता का कारण बन सकता है। केंद्रीय बैंक ने कहा, ”चूककर्ताओं के नामों के खुलासे से उन कर्मचारियों की रोजी-रोटी प्रभावित हो सकती है जो ऐसी इकाइयों में लगे हैं। मुख्य न्यायाधीश टी एस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने फंसे कर्ज में वृद्धि को लेकर गंभी चिंता जताते हुए पिछले महीने केंद्रीय बैंक को निर्देश दिया था कि वह उन कंपनियों की सूची उपलब्ध कराए जिन्होंने 500 करोड़ रूपए से अधिक के बैंक कर्ज नहीं लौटाए हैं। शीर्ष अदालत ने रिजर्व बैंक से यह भी कहा था कि वह छह सप्ताह के भीतर उन कंपनियों की सूची उपलब्ध कराने को कहा था जिनके रिण का कंपनी रिण पुनर्गठन योजना के तहत पुनर्गठन हुआ हैै। न्यायालय ने 16 फरवरी को यह भी कहा कि आखिर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक तथा वित्तीय संस्थान कैसे बिना उपयुक्त दिशानिर्देश के बड़े पैमाने पर कर्ज दिए और क्या उनकी वसूली के लिए पर्याप्त व्यवस्था है। शीर्ष अदालत ने 2005 में एनजीओ सेंटर फार पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन :सीपीआईएल: द्वारा दायर एक जनहित याचिका में रिजर्व बैंक को पक्ष बनाया है। याचिका के जरिए कुछ कंपनियों द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र की आवास एवं शहरी विकास निगम :हुडको: द्वारा दिए गए कर्ज के मुद्दे को उठाया गया है। सीपीआईएल की तरफ से मामले में अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा था कि करीब कंपनियों को दिए गए करीब 40,000 करोड़ रूपए कर्ज को 2015 में बट्टे खाते में डाला गया। रिजर्व बैंक ने अपने हलफनामे में रिण लौटाने में चूक के कई कारण बताए हैं। इसमें सरकार तथा नियामकीय एजेंसियों द्वारा मंजूरी में देरी, जमीन अधिग्रहण में देरी, कर्ज मंजूरी में विलम्ब, खराब निगरानी व्यवस्था, व्यापार प्रबंधन ज्ञान का अभाव आदि है।