पीलीभीत : उत्तर प्रदेश के पीलीभीत फर्जी एनकाउंटर केस में सभी 47 दोषी पुलिसवालों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है.
सीबीआई कोर्ट ने शुक्रवार को इस बहुचर्चित पुलिस मुठभेड़ को फर्जी करार दिया था. इस मामले में 47 पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया था. पुलिस ने 1991 में तीर्थ यात्रियों से भरी बस से 10 सिख युवकों को उतारकर उन्हें आतंकी बताकर मौत के घाट उतार दिया था.
25 साल पुराने इस फर्जी एनकाउंटर केस में अदालत ने सभी दोषियों को उम्रकैद की सजा सुना दी है.
पीलीभीत में 12 जुलाई, 1991 को नानकमथा, पटना साहिब और दूसरे तीर्थस्थलों से यात्रियों का जत्था लौट रहा था. बस में 25 तीर्थ यात्री सवार थे. आरोप है कि दोपहर लगभग 11 बजे जिले के कछालाघाट पुल के पास पुलिस ने बस रुकवाकर 12 यात्रियों को जबरन उतार लिया. इसके बाद तीनों थानों की पुलिस टीमें 4-4 यात्रियों को अपने साथ ले गई. अगले दिन तीन थाना क्षेत्रों विलसंडा, पूरनपुर और नोरिया के जंगलों में एनकाउंटर दिखाकर इन्हें मार गिराया.
पुलिस ने अपनी एफआईआर में इन्हें उग्रवादी बताते हुए इन पर जानलेवा हमला करने का आरोप लगाया था लेकिन मारे गए लोगों के घरवालों ने पुलिस पर फर्जी मुठभेड़ का आरोप लगाया था.
एडवोकेट आरएस लोढ़ी ने सुप्रीम कोर्ट में एक पीआईएल दायर की. सुप्रीम कोर्ट ने 15 मई, 1992 को सीबीआई जांच के आदेश दिए. सीबीआई ने 12 जून, 1995 को विशेष कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की.
सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में 57 पुलिसवालों को आरोपित किया था, लेकिन सुनवाई के दौरान 10 पुलिसवालों की मौत हो गई. कोर्ट ने 29 मार्च, 2016 को सुनवाई पूरी कर ली.