वैष्णव नगरी अयोध्या में गुरु पूर्णिमा पर गुरुओं का आशीर्वाद लेने पहुंचेंगे लाखों शिष्य

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वैष्णव नगरी अयोध्या ऋषि परम्परा की नगरी है। यहां ऋषि परम्परा के वाहक संत-महंत हैं जिनके लाखों शिष्य देश भर में फैले हैं। गुरु पूर्णिमा के वार्षिक पर्व पर वह सभी अयोध्या में अपने-अपने गुरुओं के प्रति अपनी श्रद्धा निवेदित करने के लिए आते हैं और गुरुओं का पूजन कर उन्हें अपनी भेंट समर्पित कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यहां आने वाले श्रद्धालुजन मां सरयू के पुण्य सलिल में डुबकी लगाने के बाद गुरु धामों में जाकर आचार्यों का आशीर्वाद लेंगे। इसके उपरांत ग्रहण स्नान के लिए भी सरयू तट पर ही रात्रि प्रवास करेंगे। ग्रहण के स्पर्श व मोक्ष पर स्नान के उपरांत ग्रहण दान करके ही श्रद्धालुजन अपने-अपने गंतव्य पर वापस रवाना होंगे।

महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में लगेगा मेला
वैष्णव नगरी में रामजन्मभूमि के ठीक पीछे ही महर्षि वशिष्ठ की स्मृति में मंदिर का निर्माण कराया गया है। यहां उन्हीं की स्मृति एक कुंड भी स्थित है जो कि उन्हीं के नाम से प्रसिद्ध है। इस स्थान पर गुरु पूर्णिमा के पर्व पर ही वार्षिक मेला लगता है। पौराणिक मान्यता है कि महाराज रघु के आग्रह पर ब्रह्मदेव को प्रसन्न कर मानसरोवर से जब वह देवी सरयू को लेकर अयोध्या आए थे तो सबसे पहले महर्षि वशिष्ठ ने देवी सरयू की प्रतिष्ठा इसी कुंड में की थी। प्रचलित किवदंती के अनुसार देवी सरयू भगवान विष्णु के नेत्रों से निकली हैं। इसी के चलते इनका एक नाम नेत्रजा भी है। भगवान विष्णु के इन अश्रुओं को ब्रह्मदेव ने अपने मानस सरोवर में प्रतिष्ठित किया था। इसी के चलते इनका नाम सरयू पड़ा। वहीं महर्षि वशिष्ठ की अनुगामिनी बनकर धरा पर आई देवी सरयू को वाशिष्ठी भी कहा जाता है।

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