मुम्बई : हर बार की तरह इस बार भी भट्ट कैंप बहुत सारे दावों-वादों के साथ एक नई फिल्म लेकर आया है, जिसका नाम है ‘लव गेम्स’। कैंप का दावा है कि यह अब तक की सबसे बोल्ड, उत्तेजक और हॉट प्रेम कहानी है, जो लोगों के होश उड़ा देगी। फिल्म के कलाकार भी इस बात का दावा करते आये कि यह फिल्म सभ्य समाज की परतें उधेड़ देगी, जिसे देख कर लोग स्तब्ध रह जाएंगे। लेकिन क्या किसी फिल्म में दर्जभर किसिंग सीन डाल देने भर से यह सब साबित हो जाता है?
क्या किसी फिल्म को बोल्ड बनाने के नाम पर केवल फूहड़ अंग प्रदर्शन दिखा देने से सोसाइटी की धज्जियां उड़ाई जा सकती हैं? फिल्म की रिलीज से पहले क्या ऐसे दावों से वाकई दर्शक टिकट खिड़की तक खिंचे चले आते हैं? शायद नहीं, क्योंकि शुक्रवार को नून और मैटिनि शो के बाद से ही साफ होने लगता है कि फिल्म में कितनी जान है और निर्देशकों के दावों में कितना दम है। इस फिल्म के साथ भी कुछ ऐसा ही है। कैसे, आइये बताते हैं…
यह एक ऐसी सोसाइटी की कहानी है, जहां किसी को कम से कम कमाने की तो टेंशन नहीं है। उनके पास सबकुछ है। धन-दौलत, गाड़ी-बंग्ला वगैराह…फिल्मी भाषा में कहें तो अपनी सुविधा के अनुसार ‘सुविधाजनक’ ढंग से करने के लिए सब कुछ। रमोना रायचंद (पत्रलेखा) भी एक दिन ऐसी ही ‘सुविधाजनक’ स्थिति का फायदा उठाकर समीर सक्सेना उर्फ सैम (गौरव अरोड़ा) संग जिस्मानी रिश्तों में बंधी दोस्ती गांठ लेती है। रमोना के पति की एक इमारत से गिरकर मौत हो जाती है। शक रमोना पर है, लेकिन कुछ साबित नहीं होता। पति की मौत के बाद रमोना के सारे बंधन खुल गए हैं। वो अब आजादी से जीना चाहती है, इसलिए वह सैम को लव गेम्स के लिए अपना साथी चुनती है। दोनों मिल कर पेज 3 पार्टीज में जाने लगते हैं और वहां आये शादी-शुदा जोड़ों को अपने प्यार के जाल में फंसाते हैं। दरअसल, ये प्यार नहीं बल्कि सेक्स का जाल है, जिसके जरिये ये दोनों अपने तन की प्यास बुझाते हैं और हार-जीत की बाजी भी लगाते हैं।
सैम किसी ग्लैमरस सी महिली को पटाता है और रमोना उस महिला के पति को। फिर दोनों इन कपल्स के साथ हम बिस्तर होते हैं…दोनों को इस काम में मजा आने लगता है, लेकिन जब एक दिन ऐसे ही लव गेम्स के जरिये सैम की मुलाकात अलीशा अस्थाना (तारा अलीशा बेरी) से होती है तो उसकी जिंदगी बदल जाती है।
अलीशा पेशे से एक डॉक्टर है और उसका पति गौरव अस्थाना (हुसैन क्वाजरवाला) एक नामी क्रिमिनल लॉयर।
गौरव, अलीशा संग आये दिन मार पीट करता है। उसे परेशान करता है, सबके सामने उसकी बेइज्जती करता है। सैम की अलीशा के प्रति हमदर्दी उसे उसके और करीब लाती, जो रमोना को बर्दाश्त नहीं होती। सैम, रमोना को छोड़ना चाहता है, लेकिन रमोना उसे उसके अतीत को लेकर ब्लैकमैल करने लगती है। एक दिन सैम, अलीशा को अपनी सारी सच्चाई बता देता है, जिससे अलीशा खफा हो जाती है और वह सैम को छोड़ देती है। अब अलीशा, सैम और अपने पति से अब बदला लेना चाहती है और वो इसके लिए रमोना के साथ मिल कर सैम-गौरव के मर्डर का एक प्लान बनाती है। लेकिन अंत समय पर सब प्लान के मुताबिक नहीं होता। गौरव तो मर जाता है, लेकिन सैम किसी तरह से बच जाता है और उसके हाथों अलीशा का खून हो जाता है।
अब तक आप समझ गए होंगे कि सैम-रमोना के लव गेम्स में उत्तेजक दृश्यों की कहां-कहां गुंजाइश बनती है। निर्देशक विक्रम भट्ट ने उस गुंजाइश की भरपाई पत्रलेखा के जरिये की है, जो इससे पहले भट्ट कैंप की एक फिल्म ‘सिटिलाईट्स’ में एक नॉन ग्लैमरस रोल में दो साल पहले नजर आयी थीं। रमोना का बस एक ही काम है, सैम पर लदे रहना। इस फिल्म में उनका ये ग्लैमरस चौंकाता है, लेकिन अपील नहीं करता। उनके किरदार में पागलपन की गुंजाइश है, जो दिखती नहीं है।
ठीक इसी तरह से सैम का किरदार भी है, जिसे गौरव अरोडम ने बस निभाने भर की कोशिश-सी ही की है, कोई खास प्रयास नहीं किया है। हां, इस बीच अलीशा के किरदार में तारा अलिशा बेरी ने जरूर कुछ अच्छे दृश्य दिये हैं। उनका अभिनय बीच-बीच में जरूर बांधता है।
मोटे तौर पर अभिनय के लिहाज से फिल्म बेहद कमजोर लगती है। इसके अलावा इसकी कहानी, जो विक्रम भट्ट ने ही लिखी है, भी खास प्रभावित नहीं करती। इंटरवल से पहले तक की कहानी पर ज्यादा जोर देने की जरूरत नहीं पड़ती। आप संहज अंदाजा लगा सकते हैं कि अगले पल क्या होने वाला है। रमोना जैसी लड़की से अगर कोई दूर जाने लगेगा तो वह क्या करेगी, इसका अंदाजा लगाना आसान है। ढेरों फिल्मों में इससे पहले ऐसे किरदार देखे जा चुके हैं। अब बात रही सैम-गौरव के मर्डर प्लान की, तो प्लान इतनी ‘सुविधा’ के साथ गढ़ा गया है कि इसे पहली कतार के दर्शक तो सबसे आसानी से समझ लेंगे। यानी जो दिख रहा है, असल में वो सब है नहीं। इस कहानी में खून करना और उससे बच निकलना इतना आसान दिखाया है कि मानो शहर में पुलिस नाम की कोई चीज ही नहीं है। दिमाग केवल सैम और रमोना के पास है, बाकी तो सब घास चरते हैं। इसलिए, ये फिल्म अपनी कहानी के नाम पर तो एक दम निराश करती है।
हां, फिल्म में कुछ गीत बेशक अच्छे बन पड़े हैं, जो अलग-अलग दृश्यों के साथ फबते हैं। ऐसा ही एक गीत है ‘निरवाना..’, जिसे विक्रम भट्ट ने शूट भी अच्छे से किया है। मोटे तौर पर ‘लव गेम्स’ अपने दावों-वादों (हॉट, बोल्ड, उत्तेजक आदि) के मुद्दे पर निराश करती है। फिल्म चूंकि एडल्ट है तो इसमें स्टाइलिश अंग्रेजी गालियों की भरमार है। पता नहीं ये कौन सी सदी का लव गेम्स है, जिसे देख कर दर्शक आकर्षित होंगे।
रेटिंग : 1.5 स्टार
सितारे : गौरव अरोडम, पत्रलेखा, तारा अलीशा बेरी, शाहीन
निर्देशक-लेखक : विक्रम भट्ट
निर्माता : मुकेश भट्ट, महेश भट्ट
संगीत : संगीत हल्दीपुर, सिद्धार्थ हल्दीपुर
गीत : कौसर मुनीर, विक्रम भट्ट