नई दिल्ली। बुंदेलखंड का जिक्र आज सूखे, पेयजल संकट से ग्रस्त क्षेत्र के रूप में होता है लेकिन 9वीं से 14वीं शताब्दी के बीच चंदेल राजाओं ने इस क्षेत्र में तालाबों की बेमिसाल डिजाइन के जरिए पूरे साल पानी से लबालब रहने वाले तालाबों एवं कुओं की श्रृंखला तैयार की थी हालांकि ए तालाब आज अपनों की बेरूखी से बदहाल हैं।
तालाबों की इंजीनियरिंग और डिजाइन पर नजर डालें तो बुंदेलखंड के मउूरानीपुर, महोबा, चरखारी आदि क्षेत्रों में तालाबों की लंबी श्रृंखला है जो एक शहर तक सीमित नहीं बल्कि 100 किलोमीटर के दायरे में पहाडों की ढलान से बहते पानी के आस पास बने कस्बों में फैली है। यह ऐसी श्रृंखला है जिसमें जब पानी एक के बाद एक तालाब में भरता चला जाता है और इलाके के सारे तालाब भरने के बाद ही बारिश का बचा हुआ पानी किसी नदी में गिरता है।
9वीं से 14वीं शताब्दी के बीच बुंदेलखंड के चंदेल कालीन तालाबों की डिजाइन और इंजीनियरिंग का जिक्र करते हुए इनोवेटिव इंडियन फाउंडेशन :आइआइएफ: के निदेशक सुधीर जैन ने कहा कि इस इलाके में एक भी प्राकृतिक झील नहीं है। चंदेलों ने।,300 साल पहले बड़े-बड़े तालाब बनवाए और उन्हें आपस में खूबसूरत अंडरग्राउंड वाटर चैनल के जरिए जोड़ा गया था। उस बेहद कम आबादी वाले जमाने में वे यह काम सिर्फ पीने के पानी के इंतजाम के लिए नहीं किया गया था। वे तो अपने शहरों को 48 डिग्री तापमान से बचाने के भी पुख्ता इंतजाम किया करते थे।
मउूरानीपुर से 50 किलोमीटर पूर्व में आल्हा-उूदल के शहर महोबा में आज भी चंदेल कालीन विशाल तालाब दिख जाते हैं। इनमें सबसे प्रमुख मदन सागर तालाब चारों तरफ से पहाडिय़ों से घिरा है।
चंदेल राजा कीरतवर्मन ने कीरतसागर तालाब बनवाया था जबकि मदनवर्मन ने मदनसागर तालाब, राजा रहिल देव वर्मन ने रहिलसागर तालाब बनवाया और दक्षराज ने इसे विस्तार दिया। इसी श्रृंखला में किराडीसागर तालाब भी शामिल है। इन तालाबों में कल्याण सागर, विनय सागर और सलारपुर तालाब शामिल हैं। यह चंदेलों के जल विज्ञान के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
जैन ने कहा लेकिन अब बरसात का पानी पहाड़ों से गिरते हुए तालाब में नहीं आता। बीच में घनी बस्तियां और सड़कें हैं। साथ ही पहाड़ों का पानी बह जाने के लिए नए रास्ते बन गए हैं।
अंग्रेजों के समय में भी इस क्षेत्र में नहरें निकालीं गई थीं जो आगे जाकर छोटे-छोटे।,000 तालाबों को पानी देती थीं लेकिन इस ब्रिटिश स्थापत्य की निशानी इन नहरों की स्थिति अब काफी खराब है।
बांदा के आरटीआई कार्यकर्ता आशीष सागर ने सूचना के अधिकार के तहत उत्तर प्रदेश सरकार के राजस्व विभाग से तालाबों के पूरे आंकड़े हासिल किए। इनसे पता चलता है कि नवंबर 2013 की खतौनी के मुताबिक, प्रदेश में 8,75,345 तालाब, झील, जलाशय और कुएं हैं। इनमें से।,12,043 जल स्रोतों पर अवैध अतिक्रमण है। राजस्व विभाग का कहना है कि 2012-13 के दौरान 65,536 अवैध कब्जों को हटाया गया।
आईआईटी कानपुर के विनोद तारे ने कहा कि ताल, तलैया और तालाब जल उपलब्ध कराने के महत्वपूर्ण स्त्रोत हैं। आज हम गंगा के संरक्षण की बात कह रहे हैं। गंगा का मतलब केवल गोमुख से निकलने वाली जलधारा नहीं है। इससे जुड़े सारे हिमनद, सारी नदियां, भूजल एवं अन्य जलस्रोत गंगा का निर्माण करते हैं। इसमें से एक भी खत्म हुई तो गंगा नहीं बचेगी। इसलिए अगर हमें गंगा को बचाना है तो ताल, तलैया, तालाबों को बचाना होगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि तालाब का उचित तरीके से संरक्षण किया जाता तो यह मझोले आकार के बांधों से ज्यादा पानी उपलब्ध करा पाता, वह भी नि:शुल्क। और इससे बांध और नहर के निर्माण का खर्च भी बचाया जा सकता था।