सुप्रीम कोर्ट ने 24 हफ्ते की गर्भवती महिला को दी गर्भपात की इजाजत

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसले में 24 हफ्ते की गर्भवती रेप पीडि़ता को गर्भपात की इजाजत दे दी। कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड की राय के बाद पीडि़ता को गर्भपात की इजाजत दी। कोर्ट का कहना है कि अगर महिला की जान को खतरा है तो 20 हफ्ते बाद भी गर्भपात कराया जा सकता है। पीडि़ता की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र और महाराष्ट्र सरकार से प्रतिक्रिया मांगी थी। पीडि़ता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मौजूदा गर्भपात कानून को चुनौती दी थी। उसने गर्भपात कराने की अनुमति देने की गुहार लगाई थी।
20 हफ्ते की समयसीमा जीवन व समानता के अधिकार का उल्लंघन
याचिका में कहा गया कि गर्भपात के लिए 20 सप्ताह की सीमा के कारण उसका शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य जोखिम में है क्योंकि उसका भ्रूण ऐसी बीमारी से ग्रस्त है जिसमें बच्चे का जन्म मस्तिष्क एवं खोपड़ी संबंधी दिक्कतों के साथ होता है और डॉक्टरों ने गर्भपात कराने से इनकार कर दिया है। वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंसाल्वेज और सत्या मित्रा ने कहा था कि इस मामले में महिला का जीवन गंभीर खतरे में है। याचिका में कहा गया है कि 20 हफ्ते की समयसीमा अतार्किक,एकतरफा,कठोर,भेदभावपूर्ण और जीवन व समानता के अधिकार का उल्लंन है।
मेडिकल टर्मिनेशनल ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट को बताया असंवैधानिक
महिला का कहना था कि डॉक्टरों के मुताबिक उसके गर्भ में पल रहा भ्रूण सामान्य नहीं है और उसके मानसिक विकारों के साथ जन्म लेने की आशंका है। याचिका में मेडिकल टर्मिनेशनल ऑफ प्रेगनेंसी (एमटीपी)एक्ट 1971की धारा 3 बी को चुनौती दी गई। इसे असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई। धारा के तहत 20 हफ्ते के बाद गर्भपात नहीं करा
सकते। याचिका के मुताबिक 1971 में जब ये कानून बना था तब भले ही इसका औचित्य रहा होगा लेकन अब नहीं है क्योंकि अब ऐसी आधुनिक तकनीक मौजूद है जिससे 26 हफ्ते के बाद भी गर्भपात कराया जा सकता है। याचिका के मुताबिक भ्रूण में गंभीर आनुवांशिक विकार का पता 20 हफ्ते बाद ही चल पाता है,इसलिए 20 हफ्ते के बाद गर्भपात की इजाजत न होना बेहद सख्त और अनुचित है। ये संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है। ।
याचिका में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट की धारा 5 की संवैधानिक वैधता को भी चुनौती दी गई। याचिका के मुताबिक अस्पतालों में डॉक्टर इस धारा के बेहद संकुचित मायने निकालते हैं। याचिका में मांग की गई है कि मेडिकल टर्मिनेशनल ऑफ प्रेगनेंसी कमेटी की रिपोर्ट को अदालत में पेश किया जाए। इस कमेटी में स्वास्थ्य सचिव,नरेश दयाल(पूर्व सचिव,आईसीएमआर) और डॉ एन के गांगुली शामिल है। याचिका में मांग की गई है कि केन्द्र सरकार सभी अस्पतालों को निर्देश दें कि वो अपने यहां डॉक्टर्स का एक अतिरिक्त पैनल बनाएं जो बलात्कार पीडि़त लड़कियों और महिलाओं का गर्भपात करा सकें जो 20 हफ्ते से ज्यादा की गर्भवती हों और ऐसा चाहती हों।
शादी का झांसा देकर किया था बलात्कार
महिला रेप पीडि़त है। उसने याचिका में कहा है कि वो बेहद ही गरीब परिवार से है। उसके मंगेतर ने शादी का झांसा देकर उसके साथ बलात्कार किया और उसे धोखा देकर दूसरी लड़की से शादी कर ली। महिला ने मंगेतर के खिलाफ रेप का केस दर्ज कराया। महिला को जब पता चला कि वो गर्भवती है तो उसने कई मेडिकल टेस्ट कराए,जिससे पता चला कि अगर वो गर्भपात नहीं कराती तो उसकी जान जा सकती है। 2 जून 2016 को डॉक्टरों ने उसका गर्भपात करने से इनकार कर दिया क्योंकि उसे गर्भधारण किए 20 हफ्ते से ज्यादा हो चुके थे। महिला ने याचिका में कहा है कि 1971 में जब कानून बना था उस समय 20 हफ्ते का नियम सही था लेकिन अब वक्त बदल गया है। 26 हफ्ते बाद भी गर्भपात होसकता है। याचिका में कहा गया है कि कानून से उसका व्यक्तिगत जीवन और निजता प्रभावित हो रही है
ई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसले में 24 हफ्ते की गर्भवती रेप पीडि़ता को गर्भपात की इजाजत दे दी। कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड की राय के बाद पीडि़ता को गर्भपात की इजाजत दी। कोर्ट का कहना है कि अगर महिला की जान को खतरा है तो 20 हफ्ते बाद भी गर्भपात कराया जा सकता है। पीडि़ता की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र और महाराष्ट्र सरकार से प्रतिक्रिया मांगी थी। पीडि़ता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मौजूदा गर्भपात कानून को चुनौती दी थी। उसने गर्भपात कराने की अनुमति देने की गुहार लगाई थी।
20 हफ्ते की समयसीमा जीवन व समानता के अधिकार का उल्लंघन
याचिका में कहा गया कि गर्भपात के लिए 20 सप्ताह की सीमा के कारण उसका शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य जोखिम में है क्योंकि उसका भ्रूण ऐसी बीमारी से ग्रस्त है जिसमें बच्चे का जन्म मस्तिष्क एवं खोपड़ी संबंधी दिक्कतों के साथ होता है और डॉक्टरों ने गर्भपात कराने से इनकार कर दिया है। वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंसाल्वेज और सत्या मित्रा ने कहा था कि इस मामले में महिला का जीवन गंभीर खतरे में है। याचिका में कहा गया है कि 20 हफ्ते की समयसीमा अतार्किक,एकतरफा,कठोर,भेदभावपूर्ण और जीवन व समानता के अधिकार का उल्लंन है।
मेडिकल टर्मिनेशनल ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट को बताया असंवैधानिक
महिला का कहना था कि डॉक्टरों के मुताबिक उसके गर्भ में पल रहा भ्रूण सामान्य नहीं है और उसके मानसिक विकारों के साथ जन्म लेने की आशंका है। याचिका में मेडिकल टर्मिनेशनल ऑफ प्रेगनेंसी (एमटीपी)एक्ट 1971की धारा 3 बी को चुनौती दी गई। इसे असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई। धारा के तहत 20 हफ्ते के बाद गर्भपात नहीं करा
सकते। याचिका के मुताबिक 1971 में जब ये कानून बना था तब भले ही इसका औचित्य रहा होगा लेकन अब नहीं है क्योंकि अब ऐसी आधुनिक तकनीक मौजूद है जिससे 26 हफ्ते के बाद भी गर्भपात कराया जा सकता है। याचिका के मुताबिक भ्रूण में गंभीर आनुवांशिक विकार का पता 20 हफ्ते बाद ही चल पाता है,इसलिए 20 हफ्ते के बाद गर्भपात की इजाजत न होना बेहद सख्त और अनुचित है। ये संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है। ।
याचिका में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट की धारा 5 की संवैधानिक वैधता को भी चुनौती दी गई। याचिका के मुताबिक अस्पतालों में डॉक्टर इस धारा के बेहद संकुचित मायने निकालते हैं। याचिका में मांग की गई है कि मेडिकल टर्मिनेशनल ऑफ प्रेगनेंसी कमेटी की रिपोर्ट को अदालत में पेश किया जाए। इस कमेटी में स्वास्थ्य सचिव,नरेश दयाल(पूर्व सचिव,आईसीएमआर) और डॉ एन के गांगुली शामिल है। याचिका में मांग की गई है कि केन्द्र सरकार सभी अस्पतालों को निर्देश दें कि वो अपने यहां डॉक्टर्स का एक अतिरिक्त पैनल बनाएं जो बलात्कार पीडि़त लड़कियों और महिलाओं का गर्भपात करा सकें जो 20 हफ्ते से ज्यादा की गर्भवती हों और ऐसा चाहती हों।
शादी का झांसा देकर किया था बलात्कार
महिला रेप पीडि़त है। उसने याचिका में कहा है कि वो बेहद ही गरीब परिवार से है। उसके मंगेतर ने शादी का झांसा देकर उसके साथ बलात्कार किया और उसे धोखा देकर दूसरी लड़की से शादी कर ली। महिला ने मंगेतर के खिलाफ रेप का केस दर्ज कराया। महिला को जब पता चला कि वो गर्भवती है तो उसने कई मेडिकल टेस्ट कराए,जिससे पता चला कि अगर वो गर्भपात नहीं कराती तो उसकी जान जा सकती है। 2 जून 2016 को डॉक्टरों ने उसका गर्भपात करने से इनकार कर दिया क्योंकि उसे गर्भधारण किए 20 हफ्ते से ज्यादा हो चुके थे। महिला ने याचिका में कहा है कि 1971 में जब कानून बना था उस समय 20 हफ्ते का नियम सही था लेकिन अब वक्त बदल गया है। 26 हफ्ते बाद भी गर्भपात होसकता है। याचिका में कहा गया है कि कानून से उसका व्यक्तिगत जीवन और निजता प्रभावित हो रही है

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