मुंबई : मुंबई की हाजी अली दरगाह में महिलाएं अब प्रवेश कर सकेंगी और मजार तक जा सकेंगी। बंबई हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए यहां की हाजी अली दरगाह के भीतरी भाग में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को हटा दिया है और कहा है कि यह प्रतिबंध किसी भी व्यक्ति के मूलभूत अधिकार का विरोधाभासी है। हाजी अली दरगाह न्यास इस फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देना चाहता है और न्यास की ओर से दायर याचिका के कारण अदालत ने अपने इस आदेश पर छह हफ्ते के लिए रोक लगा दी है। सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय ने कहा कि पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं को भी दरगाह के अंदर जाने की अनुमति दी जानी चाहिए और महाराष्ट्र सरकार को उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहिए। हालांकि अभी 6 हफ्ते तक महिलाएं मजार तक नहीं जा सकेंगी। गौर हो कि साल 2011 से महिलाओं के हाजी अली मजार तक जाने पर रोक थी।
न्यायमूर्ति वी एम कानाडे और न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे की खंडपीठ ने कहा कि हाजी अली दरगाह में महिलाओं के प्रवेश पर लगाया गया प्रतिबंध भारत के संविधान की धारा 14, 15, 19 और 25 का विरोधाभासी है। इन धाराओं के तहत किसी भी व्यक्ति को कानून के तहत समानता हासिल है और अपने मनचाहे किसी भी धर्म का पालन करने का मूलभूत अधिकार है। ये धाराएं धर्म, लिंग और अन्य आधारों पर किसी भी तरह के भेदभाव पर पाबंदी लगाती हैं और किसी भी धर्म को स्वतंत्र रूप से अपनाने, उसका पालन करने और उसका प्रचार करने की पूरी स्वतंत्रता देती हैं।
दरगाह के मजार वाले हिस्से (गर्भगृह) में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी को जाकिया सोमन और नूरजहां नियाज ने चुनौती दी थी। खंडपीठ ने उनकी याचिका को भी स्वीकार कर लिया है। उच्च न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार और हाजी अली दरगाह न्यास को दरगाह में प्रवेश करने वाली महिलाओं की सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम सुनिश्चित करना होगा। इस साल जून में उच्च न्यायालय ने याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रखा था। इस याचिका में कहा गया है कि कुरान में लैंगिग समानता अंतर्निहित है और पाबंदी का फैसला हदीस का उल्लंघन करता है जिसके तहत महिलाओं के मजारों तक जाने पर कोई रोक नहीं है।
महाराष्ट्र सरकार ने पहले अदालत में कहा था कि हाजी अली दरगाह के मजार वाले हिस्से में महिलाओं के प्रवेश पर रोक तभी होनी चाहिए जब कि कुरान में ऐसा उल्लेख किया गया हो। महाराष्ट्र के तत्कालीन महाअधिवक्ता श्रीहरि अनेय ने तर्क दिया था कि किसी विशेषज्ञ द्वारा कुरान की व्याख्या के आधार पर महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी को न्याययंगत नहीं ठहराया जा सकता। दरगाह न्यास ने अपने फैसले का यह कहते हुए बचाव किया था कि कुरान में यह उल्लेख है कि किसी भी महिला को पुरुष संत की दरगाह के करीब जाने की अनुमति देना गंभीर गुनाह है।
न्याय की ओर से पेश अधिवक्ता शोएब मेमन ने पहले कहा था कि सउदी अरब में मस्जिदों में महिलाओं को प्रवेश करने की इजाजत नहीं है। इबादत करने के लिए उनके लिए अलग स्थान की व्यवस्था है। हमने (न्यास) उनके प्रवेश पर रोक नहीं लगाई है। यह नियम केवल उनकी सुरक्षा के लिए है। न्यास केवल दरगाह का प्रबंध ही नहीं देखता है बल्कि धर्म से संबंधित मामलों को भी देखता है।
बीते अप्रैल महीने में उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार को आदेश दिया था कि वह धार्मिक स्थल पर महिलाओं के प्रवेश को लेकर होने वाले भेदभाव को रोकने की खातिर कानून का पालन सुनिश्चित करने के लिए आगे बढ़कर कदम उठाए। इस आदेश के बाद राज्य के अहमदनगर जिले में स्थित शनि शिंगनापुर मंदिर के गर्भगृह में महिलाओं को प्रवेश करने की इजाजत दे दी गई थी। हाजी अली दरगाह मामले की एक याचिकाकर्ता जाकिया सोमान ने कहा कि इस फैसले से वे बेहद खुश हैं।
उन्होंने कहा कि हम बेहद खुश और अभिभूत हैं। वहां प्रवेश करने के अहसास को महसूस करने का हम बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। यह ऐतिहासिक फैसला है और हम पूरे दिल से इसका स्वागत करते हैं और हम आभारी हैं क्योंकि मुस्लिम महिलाओं, आम मुस्लिम महिलाओं को न्याय मिला है। जिस तरह यह फैसला आया है उससे हम बेहद खुश हैं।
अदालत की ओर से आदेश पर फिलहाल के लिए रोक लगाए जाने पर उन्होंने कहा कि हम तो पहले ही जीत चुके हैं। हम लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले लोग हैं और हम समझते हैं कि फैसले को चुनौती देना और उच्च अदालत में जाना दूसरे पक्ष का लोकतांत्रिक अधिकार है। उन्होंने आगे कहा कि उनकी तरह हम उनके लोकतांत्रिक अधिकारों के रास्ते में नहीं आएंगे। लेकिन बंबई उच्च न्यायालय का फैसला हमारे पक्ष में है। भारत के संविधान और कुरान में लैंगिक समानता के जो नियम हैं उन्हें इस फैसले के जरिए कायम किया गया है। यह देशभर की महिलाओं की जीत है और कोई भी इसे उनसे नहीं छीन सकता है।
धार्मिक स्थलों पर महिलाओं को प्रवेश दिलवाने के लिए अभियान का नेतृत्व करने वाली तृप्ति देसाई ने कहा कि उच्च अदालत का फैसला ‘ऐतिहासिक’ है। उन्होंने कहा कि महिलाओं को सन् 1950 से जो अधिकार दिए गए हैं उनको उचित ढंग से लागू नहीं किया गया। महिलाओं को धर्मस्थलों में प्रवेश की इजाजत नहीं दी जाती है। हम उच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हैं। तृप्ति ने कहा कि पितृसत्तात्मक विचारधारा के खिलाफ यह सभी महिलाओं और भूमाता ब्रिगेड की जीत है। अदालती आदेश कल ऑनलाइन उपलब्ध हो जाएगा, उसके बाद हम रविवार को धार्मिक स्थल पर जाएंगे। तृप्ति ने कहा कि उच्चतम न्यायालय को भी उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखना चाहिए और सबरीमाला मंदिर में भी महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हम किसी को भी हमारे अधिकारी छीनने नहीं देंगे।
न्यायमूर्ति वी एम कानाडे और न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे की खंडपीठ ने कहा कि हाजी अली दरगाह में महिलाओं के प्रवेश पर लगाया गया प्रतिबंध भारत के संविधान की धारा 14, 15, 19 और 25 का विरोधाभासी है। इन धाराओं के तहत किसी भी व्यक्ति को कानून के तहत समानता हासिल है और अपने मनचाहे किसी भी धर्म का पालन करने का मूलभूत अधिकार है। ये धाराएं धर्म, लिंग और अन्य आधारों पर किसी भी तरह के भेदभाव पर पाबंदी लगाती हैं और किसी भी धर्म को स्वतंत्र रूप से अपनाने, उसका पालन करने और उसका प्रचार करने की पूरी स्वतंत्रता देती हैं।
दरगाह के मजार वाले हिस्से (गर्भगृह) में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी को जाकिया सोमन और नूरजहां नियाज ने चुनौती दी थी। खंडपीठ ने उनकी याचिका को भी स्वीकार कर लिया है। उच्च न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार और हाजी अली दरगाह न्यास को दरगाह में प्रवेश करने वाली महिलाओं की सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम सुनिश्चित करना होगा। इस साल जून में उच्च न्यायालय ने याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रखा था। इस याचिका में कहा गया है कि कुरान में लैंगिग समानता अंतर्निहित है और पाबंदी का फैसला हदीस का उल्लंघन करता है जिसके तहत महिलाओं के मजारों तक जाने पर कोई रोक नहीं है।
महाराष्ट्र सरकार ने पहले अदालत में कहा था कि हाजी अली दरगाह के मजार वाले हिस्से में महिलाओं के प्रवेश पर रोक तभी होनी चाहिए जब कि कुरान में ऐसा उल्लेख किया गया हो। महाराष्ट्र के तत्कालीन महाअधिवक्ता श्रीहरि अनेय ने तर्क दिया था कि किसी विशेषज्ञ द्वारा कुरान की व्याख्या के आधार पर महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी को न्याययंगत नहीं ठहराया जा सकता। दरगाह न्यास ने अपने फैसले का यह कहते हुए बचाव किया था कि कुरान में यह उल्लेख है कि किसी भी महिला को पुरुष संत की दरगाह के करीब जाने की अनुमति देना गंभीर गुनाह है।
न्याय की ओर से पेश अधिवक्ता शोएब मेमन ने पहले कहा था कि सउदी अरब में मस्जिदों में महिलाओं को प्रवेश करने की इजाजत नहीं है। इबादत करने के लिए उनके लिए अलग स्थान की व्यवस्था है। हमने (न्यास) उनके प्रवेश पर रोक नहीं लगाई है। यह नियम केवल उनकी सुरक्षा के लिए है। न्यास केवल दरगाह का प्रबंध ही नहीं देखता है बल्कि धर्म से संबंधित मामलों को भी देखता है।
बीते अप्रैल महीने में उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार को आदेश दिया था कि वह धार्मिक स्थल पर महिलाओं के प्रवेश को लेकर होने वाले भेदभाव को रोकने की खातिर कानून का पालन सुनिश्चित करने के लिए आगे बढ़कर कदम उठाए। इस आदेश के बाद राज्य के अहमदनगर जिले में स्थित शनि शिंगनापुर मंदिर के गर्भगृह में महिलाओं को प्रवेश करने की इजाजत दे दी गई थी। हाजी अली दरगाह मामले की एक याचिकाकर्ता जाकिया सोमान ने कहा कि इस फैसले से वे बेहद खुश हैं।
उन्होंने कहा कि हम बेहद खुश और अभिभूत हैं। वहां प्रवेश करने के अहसास को महसूस करने का हम बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। यह ऐतिहासिक फैसला है और हम पूरे दिल से इसका स्वागत करते हैं और हम आभारी हैं क्योंकि मुस्लिम महिलाओं, आम मुस्लिम महिलाओं को न्याय मिला है। जिस तरह यह फैसला आया है उससे हम बेहद खुश हैं।
अदालत की ओर से आदेश पर फिलहाल के लिए रोक लगाए जाने पर उन्होंने कहा कि हम तो पहले ही जीत चुके हैं। हम लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले लोग हैं और हम समझते हैं कि फैसले को चुनौती देना और उच्च अदालत में जाना दूसरे पक्ष का लोकतांत्रिक अधिकार है। उन्होंने आगे कहा कि उनकी तरह हम उनके लोकतांत्रिक अधिकारों के रास्ते में नहीं आएंगे। लेकिन बंबई उच्च न्यायालय का फैसला हमारे पक्ष में है। भारत के संविधान और कुरान में लैंगिक समानता के जो नियम हैं उन्हें इस फैसले के जरिए कायम किया गया है। यह देशभर की महिलाओं की जीत है और कोई भी इसे उनसे नहीं छीन सकता है।
धार्मिक स्थलों पर महिलाओं को प्रवेश दिलवाने के लिए अभियान का नेतृत्व करने वाली तृप्ति देसाई ने कहा कि उच्च अदालत का फैसला ‘ऐतिहासिक’ है। उन्होंने कहा कि महिलाओं को सन् 1950 से जो अधिकार दिए गए हैं उनको उचित ढंग से लागू नहीं किया गया। महिलाओं को धर्मस्थलों में प्रवेश की इजाजत नहीं दी जाती है। हम उच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हैं। तृप्ति ने कहा कि पितृसत्तात्मक विचारधारा के खिलाफ यह सभी महिलाओं और भूमाता ब्रिगेड की जीत है। अदालती आदेश कल ऑनलाइन उपलब्ध हो जाएगा, उसके बाद हम रविवार को धार्मिक स्थल पर जाएंगे। तृप्ति ने कहा कि उच्चतम न्यायालय को भी उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखना चाहिए और सबरीमाला मंदिर में भी महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हम किसी को भी हमारे अधिकारी छीनने नहीं देंगे।