बुन्देलखंड : यहां सपा की दादी का मुकाबला भाजपा के नाती से…

0
848

ELECTION-2017 : सौंदर्य की बात बाद में, पहले बात माफिया की. चरखारी के पास कबरई में देश की बड़ी क्रेशर मंडी है, जहां पत्थर काटे जाते हैं. यहां छोटे छोटे पहाड़ हैं. पहाड़ पत्थरों का खजाना होते हैं. पत्थरों से पैसा मिलता है. पैसे से ताकत मिलती है. इसलिए यहां माफिया सक्रिय हैं. लाइसेंस हो न हो, बहुत सारे घरों में असलहा है. सूपा गांव में एक लड़के ने कहा, ‘यहां वो वारो हिसाब है. तुम्हाए पास राइफल तो हमाए पास 12 बोर. जे बुंदेलखंड के पानी कौ असर है.’

महोबा जिले का सुंदर कस्बा है चरखारी. यहां पहले रियासत थी. आपस में जुड़े बरसों पुराने सात तालाब हैं. उनके पसमंजर में एक 300 फुट ऊंचा पहाड़ है, जिस पर पुराना किला बना हुआ है. इस किले पर सेना का नियंत्रण है और यहां आम आदमी को जाने की इजाजत नहीं है. चरखारी में ये अफवाह खूब उड़ती है कि किले में खजाना गड़ा हुआ है.

चरखारी का इतिहास (बुन्देलखंड का कश्मीर)

चंदेलों की राजशाही के सैकड़ों साल बाद की बात है. बताते हैं कि राजा छत्रसाल के बेटे जगतराज को चरखारी के पुराने मुंडिया पहाड़ पर चंदेलों का सोने के सिक्कों से भरा कलश मिला. ये कलश राजा परमाल का था जो पृथ्वीराज चौहान से हारने के बाद महोबा से कालिंजर चले गए थे और इसी दौरान उन्होंने इसे चरखारी में छिपा दिया था. जब जगतराज को ये कलश मिला तो पिता छत्रसाल ने कहा कि बेटा इससे दान पुण्य करो. तब जगतराज ने इसी धन से बीस हजार कन्यादान कराए, 22 बड़े-बड़े तालाब बनवाए, चंदेलकालीन मंदिरों और तालाबों को दुरुस्त करवाया. जमीन से 300 फुट की ऊंचाई पर एक बड़ा किला बनवाया. इसमें तीन दरवाजे बनवाए. सूपा, ड्योढ़ी और हाथी चिघाड़.

लेकिन इस किले में आम आदमी नहीं जा सकता. यहां सालों से सेना का नियंत्रण है. किले के अंदर बड़े-बड़े गोदाम बने हुए हैं जिसमें अनाज भरा रहता था और सालों तक खराब नहीं होता था. लोगों ने ही बताया कि उसी समय से चरखारी की सीवेज व्यवस्था ऐसी बनाई गई है कि कितनी भी बारिश हो यहां पानी नहीं ठहरता. आधुनिक समय के विधायकों से अच्छा सीवेज तो राजा ने बनवा दिया था.

    यूपी के पहले मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत जब चरखारी आए थे तो यहां की सुंदरता देखकर इसे बुंदेलखंड का कश्मीर कह गए थे. चरखारी उन्हें इतना प्रिय था कि आजादी के बाद रियासतों के विलय के समय जब चरखारी की अवाम ने मध्य प्रदेश में विलय के पक्ष में फैसला दिया तो पंत अड़ गए. उन्होंने तुरंत चरखारी के नेताओं को बुलाया, महाराज चरखारी से बात की और चरखारी को यूपी में बनाए रखा.

390 गांवों वाली चरखारी विधानसभा सीट कई वजहों से चर्चित है. यहां 5 साल में चौथी बार विधानसभा चुनाव हो रहे हैं.

बीजेपी में वापसी के बाद उमा भारती 2012 का विधानसभा चुनाव यहीं आकर लड़ी थीं और लोध राजपूत बहुल सीट से 25 हजार से ज्यादा के अंतर से जीती थीं. 2014 में ही वो लोकसभा से दिल्ली चली गईं तो उपचुनाव में सपा के लोध नेता कप्तान सिंह राजपूत जीत गए. लेकिन कप्तान पर 12 साल पुराना मर्डर केसा था, जिसमें जालौन की एक अदालत ने उन्हें दोषी पाया और उम्रकैद की सजा सुना दी. कुछ महीनों में ही उनकी विधायकी चली गई और 2015 में यहां फिर चुनाव हुए. सपा ने कप्तान की पत्नी उर्मिला राजपूत को टिकट दिया. लोग बताते हैं कि वो सिंदूर लेकर समर्थन मांगने उतरीं और सहानुभूति की लहर में जीत भी गईं.

उर्मिला राजपूत इस बार सपा-कांग्रेस गठबंधन प्रत्याशी के तौर पर लड़ रही हैं. उनका मुकाबला उनके रिश्ते में नाती लगने वाले बीजेपी के ब्रजभूषण राजपूत से है. सपाई दादी और भाजपाई नाती दोनों का परिवार उरई के बम्हौरी का रहने वाला है. चरखारी में ज्यादातर बाहरी लोग आकर ही चुनाव लड़ते और जीतते हैं. चरखारी की पीड़ा यही है कि यहां से लोग जीतकर उरई, जालौन और झांसी जाकर क्यों बैठ जाते हैं.

ब्रजभूषण हमीरपुर से तीन बार सांसद रहे गंगाचरण राजपूत के बड़े बेटे हैं. गंगाचरण पहली बार 1989 में जनता पार्टी से सांसद बने, फिर 96 और 98 में बीजेपी से. 2004 में वो कांग्रेस में चले गए. इसी साल जब सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री का पद ठुकरा दिया तो स्वामीभक्ति में उन्होंने मैडम के घर के बाहर अपनी कनपटी पर पिस्तौल लगा ली. फिर यूपी में कांग्रेस को डूबता देखकर वो 2009 में बसपाई हो गए. 2014 में मोदी लहर देख उनका मन फिर मचल गया और अगले साल उन्होंने भगवा पटका पहन लिया. इसी साल उनके छोटे बेटे अखिल राजपूत चरखारी से उपचुनाव लड़े और उर्मिला राजपूत से हार गए. अब बड़े लड़के ब्रजभूषण लड़ रहे हैं.

‘बाहरी’ का मुद्दा यहां इस बार नजर आता है. इसलिए चरखारी से होने का दावा ठोंकते हुए बसपा के जितेंद्र कुमार मिश्रा मैदान में हैं. बसपा आखिरी बार 2007 में यहां से जीती थी. जितेंद्र मिश्रा इससे पहले सपा से जिला पंचायत अध्यक्ष थे. कार्यकाल खत्म हुआ तो राइट टाइम पर बसपा में आ गए. कस्बे के बाजार में किसी ने कहा, ‘हाथी पर जब बाभन सवार होता है तो कुछ भी हो सकता है.’

सपा और बीजेपी से लोधी राजपूत कैंडिडेट हैं. दोनों मजबूत हैं. बीजेपी दफ्तर में लोगों ने दावा किया कि 70 हजार लोधी वोटों में से 80 परसेंट उनके साथ है. लेकिन इलाके में घूमने पर ऐसा लगता नहीं है. किसके पास ज्यादा जाएगा, इस पर यहां के पुराने लोग भी विश्वस्त नहीं हैं. चरखारी कस्बे में कई ‘एलआर’ बीजेपी के पक्ष में दिखे. सूपा गांव में ज्यादातर सपा के पक्ष में थे. सूपा में ही एक नौजवान वकील साहब ने सबको गरियाया. लेकिन गांव के एक नौजवान ने जब नरेंद्र मोदी को कुछ कहा तो भड़क गए. कहने लगे, किसी भाजपाई को कुछ भी कह लो पर मोदी को कुछ न कहना.

दलितों में यहां जाटव, अहिरवार और वाल्मीकि हर हाल में बसपा के साथ है. लेकिन बीजेपी के चुनावी दफ्तर में ब्रजभूषण राजपूत के चचेरे भाई पुनीत राजपूत दावा करते हैं कि पासवान उनके साथ है. सिद्धगोपाल साहू महोबा के पुराने सपा नेता हैं. यहां माइनिंग का उनका काफी काम है. उनके असर से साहू वोट भी सपा को मिल सकता है. लेकिन भाजपा दफ्तर में एक कार्यकर्ता ने प्रधानमंत्री की तस्वीर की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘हम तो इनके नाम पर वोट मांग रहे हैं. ये भी तो वही हैं. गुजरात में मोदी हो जाता है. यहां साहू है.’

30 हजार कुशवाहा वोट निर्णायक हो सकता है जो बसपा के साथ भी जा सकता है. लेकिन बीजेपी भी केशव प्रसाद मौर्य की तस्वीर दिखा रही है. भाजपा दफ्तर में ब्राह्मण वोटरों पर सवाल किया तो एक किस्म का अविश्वास बॉडी लैंग्वेज में दिखा. कस्बे के बाजार में भी लोगों ने कहा कि ब्राह्मण इस बार ब्राह्मण के साथ, यानी बसपा कैंडिडेट जितेंद्र मिश्रा के साथ जा रहा है. 16 हजार मुसलमान हैं, जो ऐसा लगता है कि बसपा के साथ ज्यादा जाएंगे. चरखारी कस्बे में खान साहब की टेलर की दुकान पर बात करने गया तो बोले अंदर आ जाओ. उन्होंने धीमे से कहा कि अखिलेश यादव को पसंद करता हूं, सरकार उनकी बनेगी. लेकिन इस बार कप्तान को वोट नहीं करूंगा. वो आदमी जीतकर बाहर चला जाता है. जो मुसलमान उसे वोट करेगा वो सिर्फ अखिलेश के नाम पर करेगा.

    अखिलेश यादव की बात यहां लोग ज्यादा इसलिए भी करते हैं क्योंकि वो मुख्यमंत्री रहते हुए दो बार यहां आ चुके हैं. पिछले साल पनवाड़ी विकासखंड के गांव कनकुआं में 50 मेगावाट के सोलर प्लांट का उद्घाटन उन्होंने किया. यहां के सात तालाबों की खुदाई और सौंदर्यीकरण के समय भी वो यहां आए. लोग बताते हैं कि इस काम में प्रदेश सरकार ने 144 करोड़ रुपये खर्च किए.

आपस में जुड़े हुए सात सुंदर तालाब और कृष्ण के 108 मंदिर यहां एक बढ़िया टूरिस्ट प्लेस की संभावना जगाते हैं. इससे बेरोजगारी की दिक्कत भी कुछ सुलझ सकती है. इस दिशा में किसी ने कुछ नहीं किया, लेकिन तालाबों की हालत सुधरने से लोग खुश हैं. एक भाजपा समर्थक से अखिलेश के काम पर राय मांगी तो वो भी बुराई नहीं कर पाया. यहां प्रचंड बेरोजगारी है. जिन किसानों के पास ट्यूबवेल है सिर्फ वही ठीक से सिंचाई कर पाते हैं. लोगों ने बताया कि सरकारी पानी तीन दिन में एक बार आता है. रेलवे लाइन यहां नहीं है और लोग बस डिपो भी चाहते हैं. बिजली की हालत पहले बहुत बुरी थी, पर अब 14-16 घंटे आने लगी है. सड़कें अच्छी हैं. चरखारी से सूपा के लिए गए तो वहां भी सड़क चौड़ी हो रही थी.

Charkhari caste equations

सूपा गांव में बहुत सारे लोग नोटबंदी से नाराज दिखे. एक ने कहा कि एक तो वैसे ही बेरोजगारी है, ऊपर से नोटबंदी ने कमर तोड़ दी. कस्बे में भी नोटबंदी को बुरा फैसला कहने वाले लोग ज्यादा मिले. एक टेलर ने कहा कि उसकी 15 दिन तक बोहनी नहीं हुई थी. इसलिए बसपा को वोट देगा.

बसपा को दलित, ब्राह्मण, मुसलमान और कुशवाहा मिल जाए और लोधी राजपूत सपा-भाजपा में बंट जाए तो हाथी यहां से जीत सकता है. एक लोकल अखबार का पत्रकार बांह पकड़कर चाय पिलाने ले गया. चरखारी किले के ड्योढ़ी दरवाजे के सामने उसने बताया कि देखिए यहां गणेश जी बैठे हैं और कौन बैठे हैं, माता बैठी हैं. ये देवता यहां बैठवाए गए हैं. बीजेपी वालों ने अपना दफ्तर ड्योढ़ी दरवाजे के अंदर बनवाया है, देखिएगा ये बर्बाद होकर लौटेंगे. माता भवानी का श्राप है. जिसने इस जमीन पर कब्जा करना चाहा, जिसने किले का धन हासिल करना चाहा उसका नाश हो गया.

मैंने पूछा कि फिर जीत कौन रहा है तो बोले, ‘आप मेरा नंबर लिख लो. बसपा जीतेगी.’

बीजेपी की आखिरी विधायक यहां उमा भारती थीं. लोधी राजपूत और ब्राह्मणों के अलावा यहां मुसलमानों ने भी उन्हें वोट दिया था. ये सोचकर कि बड़ी नेता हैं, दिल्ली तक इनकी चलती है, विकास करवाएंगी. लेकिन लोगों ने बताया कि जीतने के बाद वो यहां दिखाई ही नहीं दीं. दो साल बाद ही सांसद बनने झांसी चली गईं.

सपा से सिटिंग विधायक उर्मिला राजपूत हैं जिन्हें कोई विधायक नहीं मानता. सब उनके सजायाफ्ता पति कप्तान सिंह राजपूत का ही नाम लेते हैं. सूपा गांव में लोगों ने लेखपालों के नाम ले-लेकर बताया कि वे काम करवाने के लिए घूस मांगते हैं और कप्तान सिंह राजपूत फोन नहीं उठाते. लोगों का छोड़िए, उनके लोग यहां के लोकल सपा नेताओं का फोन नहीं उठाते.

इस असंतोष का फायदा बसपा को मिल सकता है. कई जगहों पर लोधी राजपूतों ने अभी अपना वोट तय नहीं किया है. गठबंधन में ये सीट सपा को मिली. 27 साल की नफीसा अली से मुलाकात हुई जो कांग्रेस की महिला मोर्चा की जिला अध्यक्ष और प्रदेश सचिव हैं. वो बताती हैं कांग्रेस से टिकट दावेदारों में उनका नाम सबसे ऊपर था, पर गठबंधन हो गया तो अब उर्मिला राजपूत के साथ लगे हैं. उन्होंने ही बताया कि एजुकेशन की हालत यहां बहुत खराब है. सरकारी स्कूल में 200 सीटें हैं, लेकिन 2000 से ज्यादा एप्लीकेशन फॉर्म भरे जाते हैं.

सूपा गांव में नौजवान कृष्ण कुमार राजपूत ने बताया कि यहां अभी वोट किसे देना है, वाली बात शुरू नहीं हुई है. लेकिन ज्यादातर लोग कप्तान सिंह राजपूत के साथ लगे हैं. पर यहां भाजपा और बसपा के वोट भी हैं.

लेखक- कुलदीप कुमार
thelallantop.com

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here