खुशखबरी: सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं हटेंगे यूपी के 1.72 लाख शिक्षामित्र, रखी एक शर्त

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नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के शिक्षाम‌ित्रों को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी है। शिक्षामित्रों (SHIKSHAMITRA)  के समायोजन पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा- यूपी में शिक्षामित्र बनने के लिए टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट (टीईटी) क्लियर करना अनिवार्य होगा। कि समायोजित किए गए 1.72 लाख शिक्षामित्र नहीं हटाए जाएंगे। लेकिन उन्हें दो भतिर्यों के अंदर परीक्षा पास करनी होगी, इसमें उन्हें अनुभव का भी वेटेज मिलेगा। इसके साथ ही टीइटी ((UPTET 72825)  वालों को भी राहत मिली है। उनका अकादमिक रिकॉर्ड देखा जाएगा।  इसके साथ-साथ अदालत ने इस वर्डिक्ट में यह भी कहा है कि उनको टीईटी क्लियर करने के लिए दो मौके मिलेंगे। कोर्ट ने यह भी बताया है की समायोजित किए गए 1.72 लाख शिक्षामित्र नहीं हटाए जाएंगे।

बता दें कि उत्तर प्रदेश में 1.72 लाख शिक्षामित्रों को सहायक शिक्षक के तौर पर समायोजित करना है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शिक्षामित्रों का समायोजन निरस्त कर दिया था। इस फैसले के खिलाफ शिक्षामित्र सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। 17 मई को सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा मित्रों पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जो भी पक्षकार लिखित रूप से अपना पक्ष रखना चाहता है वह एक हफ्ते के भीतर रख सकते हैं।

शिक्षामित्रों की ओर से सलमान खुर्शीद, अमित सिब्बल, नितेश गुप्ता, जयंत भूषण, आरएस सूरी सहित कई वरिष्ठ वकीलों ने अपनी ओर से दलीलें पेश की थी। शिक्षामित्रों की ओर से पेश अधिकतर वकीलों का कहना था कि शिक्षामित्र वर्षों से काम कर रहे हैं, लेकिन अब तक उनका भविष्य अधर में है। ऐसे में उन्हें सहायक शिक्षक के तौर पर जारी रखा जाए। साथ ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई कि वह संविधान के अनुच्छेद-142 का इस्तेमाल कर शिक्षामित्रों को राहत प्रदान करें।

शिक्षामित्र स्नातक बीटीसी (BTC) और टीईटी (TET) पास हैं। कई ऐसे हैं जो करीब 10 सालों से काम कर रहे हैं। वहीं शिक्षामित्रों की ओर से पेश वकील ने कहा कि यह कहना गलत है कि शिक्षामित्रों को नियमित किया गया है। उन्होंने कहा कि सहायक शिक्षकों के रूप में उनकी नियुक्ति हुई है। वकीलों का कहना था कि राज्य में शिक्षकों की कमी को ध्यान में रखते हुए स्कीम के तहत शिक्षामित्रों की नियुक्ति हुई थी। लेकिन ये नियुक्ति गलत ढंग से हुई है।

 केस से जुड़े कुछ पॉइंट्स  

  • आपको बताते चलें कि उत्तर प्रदेश में 1.72 लाख शिक्षामित्रों को समायोजित किया जाना है। इलाहाबाद ने शिक्षामित्रों के समायोजन को रद्द कर दिया था। इस फैसले के खिलाफ शिक्षामित्रों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल थी। सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। कोर्ट ने कहा था कि जो भी पक्षकार लिखित रूप से अपना पक्ष रखना चाहता है वह एक हफ्ते के भीतर रख सकते हैं।
  • शिक्षामित्रों की ओर से सलमान खुर्शीद, अमित सिब्बल, नितेश गुप्ता, जयंत भूषण, आरएस सूरी सहित कई वरिष्ठ वकीलों ने अपनी ओर से दलीलें पेश की थी। अधिकतर वकीलों का कहना था कि शिक्षामित्र वर्षों से काम कर रहे हैं, वे अधर में हैं। लिहाजा, मानवीय आधार पर सहायक शिक्षक के तौर पर शिक्षामित्रों के समायोजन को जारी रखा जाए। साथ ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई थी कि वह संविधान के अनुच्छेद-142 का इस्तेमाल कर शिक्षामित्रों को राहत प्रदान करें।
  • वरिष्ठ वकील नितेश गुप्ता ने कहा था कि सहायक शिक्षक बने करीब 22 हजार शिक्षामित्र ऐसे हैं, जिनके पास वांछनीय योग्यता है, लेकिन हाईकोर्ट ने इस पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने कहा कि ये शिक्षामित्र स्नातक बीटीसी और टीईटी पास हैं। ये सभी करीब 10 सालों से काम कर रहे हैं। वहीं शिक्षामित्रों की ओर से पेश वकील ने कहा कि यह कहना गलत है कि शिक्षामित्रों को नियमित किया गया है। उन्होंने कहा कि सहायक शिक्षकों के रूप में उनकी नियुक्ति हुई है। वकीलों का कहना था कि राज्य में शिक्षकों की कमी को ध्यान में रखते हुए स्कीम के तहत शिक्षामित्रों की नियुक्ति हुई थी। उनकी नियुक्ति पिछले दरवाजे से नहीं हुई थी। शिक्षामित्र पढ़ाना जानते हैं। उनके पास अनुभव है। वे वर्षों से पढ़ा रहे हैं। उम्र के इस पड़ाव में उनके साथ मानवीय रवैया अपनाया जाना चाहिए। सभी की दलीलों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।



क्या था केस ?
गौरतलब है कि 12 सितंबर 2015 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सभी शिक्षामित्रों का समायोजन रद्द कर दिया था। इसमें से 1.30 लाख शिक्षामित्र समायोजित हो चुके हैं और बाकी को समायोजित करने की प्रक्रिया चल रही थी। यूपी सरकार ने इस मसले को केंद्र सरकार के साथ मिलकर सुलझाने की कोशिश भी की, लेकिन केंद्र ने भी राज्य के पाले में गेंद डाल दी थी।

इसके बाद अखिलेश सरकार ने नवंबर में सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पिटीशन दायर की थी। राज्य सरकार का तर्क था कि उत्त्र प्रदेश में शिक्षकों की कमी के चलते ही शिक्षामित्रों को रखा गया था। वहीं शिक्षा का अधिकार कानून के आने के बाद इन्हें राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) से अनुमति लेकर प्रशिक्षित भी किया गया।

 Supreme Court on Tuesday said that Teachers Eligibility Test is mandatory for being a ‘Shikshamitra’ in Uttar Pradesh. The court also granted two opportunities to aspirants to clear the Teachers Eligibility Test.

In this case 1,72,000 contractual teachers in Uttar Pradesh as assistant teachers will be accomodated. Earlier, the Allahabad High Court had canceled the adjustment of contractual teachers, against which the Uttar Pradesh government and the teachers went to Supreme Court.

So far, 1,32,000 contractual teachers are accommodated at the post of assistant teachers.


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