नई दिल्ली । उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि किसी बच्ची से बलात्कार के जुर्म में दोषी को कठोर सजा देने का प्रावधान करने के लिए संसद को कानून में संशोधन पर विचार करना चाहिए और बलात्कार के ऐसे अपराध में ‘बालिका को परिभाषित करना चाहिए। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति एन वी रमण की पीठ ने महिला वकीलों के संगठन की याचिका पर विचार करने से इंकार करते हुए कहा, ”संसद भारतीय दंड संहिता में ऐसे प्रावधान करने पर विचार कर सकती है और वह बलात्कार के अपराध के संदर्भ में ‘बच्चे को परिभाषित करने पर भी विचार कर सकती है। महिला वकीलों का संगठन चाहता था कि बच्चियों से बलात्कार के दोषियों का बंध्यकरण किया जाना चाहिए। न्यायालय ने इस सवाल को विधायिका के विचारार्थ छोड़ दिया। हालांकि वह उच्चतम न्यायालय वीमेन लायर्स एसोसिएशन की इस दलील से सहमत था कि बलात्कार के अपराध के मामले में दस साल की उम्र तक के बच्चों को अन्य नाबालिग लड़कियों के समकक्ष नहीं रखा जा सकता और विधायिका को कानून में बदलाव करना होगा। इस संगठन की वकील ने कहा कि बलात्कार की शिकार ऐसी बच्चियों की पीड़ा को देखते हुए दोषियों में भय का भाव पैदा करना जरूरी है। न्यायालय ने अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी की इस राय से सहमति व्यक्त की कि कानून को किसी दंड विशेष का सुझाव नहीं देना चाहिए। पीठ ने कहा कि कानून को कभी भी भावनात्मक पूर्ण नहीं होना चाहिए। रोहतगी ने कहा कि बलात्कार के दोषी के बंध्याकरण की मांग तार्किक नहीं बल्कि आवेश की वजह से है। न्यायालय ने विशाखा प्रकरण की तर्ज पर इस मामले में भी निर्देश देने का अनुरोध अस्वीकार कर दिया और कहा कि मौजूदा मामले के लिए कानून है।