
उद्योग मण्डल ‘एसोचैम द्वारा चिकनकारी उद्योग को लेकर कराए गए ताजा अध्ययन में कहा गया है कि कुशल कारीगरों की कमी और जागरूकता के अभाव का बुरा असर लखनउू के चिकनकारी उद्योग पर पड़ रहा है। हालात ए हैं कि दस्तकारी द्वारा उत्पादित कुल चिकन के केवल पांच प्रतिशत हिस्से के कपड़े ही निर्यात किए जा रहे हैं, बाकी को घरेलू बाजार में ही किसी तरह खपाया जा रहा है। एसोचैम के आर्थिक अनुसंधान ब्यूरो द्वारा कराए गए इस अध्ययन के मुताबिक ”मशीन से बनाए जाने वाले चीनी चिकन के कपड़े लखनवी चिकन उद्योग को चुनौती दे रहे हैं। चीनी चिकन के मुकाबले दस्तकारों द्वारा बनाए जाने वाले चिकन के कपड़ों की सुपुर्दगी में अक्सर वक्त की पाबंदी नहीं हो पाती, क्योंकि ज्यादातर कारीगर लखनउू के आसपास के गांवों में रहते हैं। इसके अलावा चीनी चिकन लखनवी चिकन के मुकाबले करीब 30 प्रतिशत सस्ता भी होता है। अध्ययन के मुताबिक लखनउू का चिकनकारी उद्योग काफी बिखरा हुआ है और बाजार तथा निर्यात के रूख के बारे में पर्याप्त जानकारी ना होने, सुअवसरों और कीमतों की जानकारी की कमी, कच्चे माल की कमी और फैक्ट्री में निर्मित उत्पादों से मिल रही प्रतिस्पद्र्धा से मुकाबले के लिए पर्याप्त वित्तीय सहायता की कमी इस बिखराव के मुख्य कारण हैं।अध्ययन में सुझाव दिया गया है कि अगर लखनवी चिकनकारी की ब्रांड छवि बनाई जाए, लक्षित देशों में रोड शो और शिल्प उत्सव आयोजित किए जाएं और प्रचार के लिए आकर्षक बैनर तथा पट्टिकाएं लगाई जाएं तो इस उद्योग को संगठित रूप से उभरने में मदद मिल सकती है। इसके अलावा नई किस्म की और ध्यान खींचने वाली पैकेजिंग भी समय की मांग है। एसोचैम का सुझाव है कि सरकार को चिकन उत्पादों के लिए विशिष्ट बाजार बनाने चाहिए। इसके अलावा बाजार के आकार, आयात मूल्यों तथा अन्य महत्वपूर्ण कारकों के हिसाब से चुनिन्दा देशों में शोरूम तथा गोदामों की सुविधा उपलब्ध करानी चाहिए। इससे घरेलू चिकन उत्पादों के निर्यात में सुधार आ सकता है। अध्ययन के मुताबिक ”लखनवी चिकनकारी के एकीकृत विकास के लिए सरकार को निजी क्षेत्र से साझीदारी करने की जरूरत है। इसके अलावा स्थानीय स्तर पर चिकनकारी और उद्यमिता प्रशिक्षण केन्द्र भी खोले जाने चाहिए।